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(ख ) ग्रन्थेतर-समालोचनात्मक नया सन्देश
___ समालोचना करनेवाला जैनी नहीं ! किसी वस्तुके गुण-दोषपर विचार करना और उन्हे दिखलाना 'समालोचना' कहलाता है। परीक्षा, समीक्षा, मीमासा और विवेचना भी उसीके नामान्तर हैं। समालोचनाके द्वारा विवेक जागृत होता है, हेयोपादेयका ज्ञान बढता और अन्ध-श्रद्धाका नाश होता है। इस लिये सद्धर्मप्रवर्तक और सद्विचारक जन हमेशा परीक्षा-प्रधानताका अभिनन्दन किया करते और उसे महत्वकी दृष्टिसे देखा करते हैं। जैनधर्ममे इस परीक्षा-प्रधानताको और भी ज्यादा महत्व दिया गया है और किसी भी विषयके त्याग-ग्रहणसे पहले उसकी अच्छी तरहसे जांच-पडतालकर लेनेकी प्रेरणा की गई है। गुणदोषोपर विचार करनेका यह अधिकार भी सभी मनुष्योको स्वभावसे ही प्राप्त है, चाहे वह मनुष्य छोटा हो या वडा और चाहे उच्चासनपर विराजमान हो या नीचेपर। जो मनुष्य किसी वस्तुको निर्माण करके उसे पब्लिकके सामने रखता है, वह अपने उस कृत्यके द्वारा इस बातकी घोषणा करता है कि प्रत्येक मनुष्य उस वस्तुके गुणदोषोपर विचार करे। और इसलिये पब्लिकमे रक्खी हुई किसी वस्तुपर यदि कोई मनुष्य अपनी सम्मति प्रकट करता है, उसके गुण-दोपोको बतलाता है तो उसके इस अधिकारमे बाधा डालनेका किसीको अधिकार नहीं है। अपनी भूल और अपनी त्रुटि बहुधा अपनेको मालूम नही हुआ करती, उसे प्राय. दूसरे