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________________ युगवीर-निवन्धावली नामकी दो गाथाएँ तो पखण्डागमकी मूलसूत्र गाथाएँ हैं। मभव है 'परसमयाण वयण' नामकी चौथी गाथा भी धवलादिकमे पाई जाती हो और मेरे देखने में अवतक न आई हो । (ब) ढाढसी गाथा नामक कर्तृनामरहित प्रवन्धमे उपलब्ध होनेवाली 'संघो कोविण तारइ' नामकी जिस गाथाको, जनहितैपीके कथनानुसार, मेघविजयने अमृतचन्द्रके श्रावकाचारकी गाया बतलाकर उद्धृत किया है उस परसे उक्त प्रवन्ध अमृतचद्रका नहीं कहा जा सकता--न तो वह कोई श्रावकाचार ही है और न उमी श्रावकाचार परसे मेघविजय द्वारा उद्धृत किये जानेवाले दूसरे 'या मूर्ग नामेय' इत्यादि पद्य प्राकृत भापाके हैं, बल्कि पुरुषार्थ सिद्धयुपायके सस्कृत पद्य है। इससे मेघविजयके उद्धरणोकी स्थिति और भी ज्यादा सदिग्ध हो जाती है और वे ढाढसी गाथाको अमृतचन्द्रकी ठहरानेके लिए पर्याप्त नहीं हैं। (ग) प्रवचनसारकी जिस १२४ वें पृष्ठपर दी हुई टीकाको आलापपद्धतिसे तुलना करनेके लिये कहा गया है उसपरसे जहाँ तक मैने गौर किया है यह लाजिमी नतीजा नही निकलता कि अमृतचन्द्रके सामने देवसेनकी 'आलापद्धति' थी--दोनोके सामान्य-गुणोके प्ररूपणमे वहुत वडा अन्तर है। इसके सिवाय, जव आलापपद्धतिकार अपने ग्रथकी रचना 'नयचक्र' के आधारपर बतलाता है तब यह कैसे कहा जा सकता है कि उक्त प्राचीन ग्रथ अमृतचन्द्रके सामने मौजूद नहीं था और अमृतचन्द्रके कथनमे जो कुछ थोडा-सा सादृश्य पाया जाता है वह नयचक्रका न होकर आलापपद्धति का है ? फिर भी प्रो० साहबने जिस समयका अनुमान किया है वह करीब करीब ठीक जान पड़ता है। पहले-तीसरे कारणकी अनुपस्थितिमे अमृतचन्द्रका समय ईसाकी १० वी शताब्दीका
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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