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जयधवलाका प्रकाशन
जैसे पृष्ठ १८ पर 'पेज्जसद्दो' की जगह 'पेज्जसद्दा', पृष्ठ १० पर 'गुणधरमपि' की जगह 'गुणधर-विमपि' और पृष्ठ १४ पर 'उन्हे' 'नही' जैसे शब्दोको अनुस्वारहीन छापा गया है।
छापते समय कही-कही पैरेग्राफका विभाग भी कुछ गडबडा गया है, जैसे पृष्ठ १८ पर 'सपहि गाहाए' इत्यादिको नया पैरेग्राफ डालकर छापना चाहिये था-उसे पूर्वके चालू पैरेग्राफमे ही शामिल कर दिया गया है। पृष्ठ १६ पर चूर्णिकी टीकाको तो नया पैरेग्राफ डालकर छापा गया है, परन्तु उसके हिन्दी अनुवादको छापते समय पैरेग्राफके विभाग को भुला दिया हैउसे चूणिके अनुवादमे ही शामिल कर दिया है। और चूणिको छापते समय उसके शुरूमे पैरेग्राफका व्यञ्जक कोई स्थान ही नही छोडा गया । इससे एक नजर डालते ही ऐसा मालूम होता है कि चूर्णिका कुछ अश छूट गया है अथवा वह पूर्ववर्ती पृष्ठ पर दिया हुआ है, जब कि ऐसा कुछ भी नही है। चूर्णिसूत्रोको यदि अच्छे इटैलिक टाइपमे छापा जाता तो ज्यादा अच्छा रहता।
__ मूलगाथा तथा चूर्णिमे प्रयुक्त हुए शब्दो अथवा पदोकी टीका छापते समय टीकामे उन्हे कुछ बडे अथवा ब्लॉक टाइपमे छपाना चाहिये था, जिससे दृष्टि डालते ही अभिमत शब्दका अर्थादि मालूम करनेमे पाठकोको सुविधा रहती। ___ इस प्रकार त्रुटियोका यह कुछ दिग्दर्शन है। और वह मेरे इस कथनको पुष्ट करता है कि इस ग्रन्थके प्रकाशनमे जरूरतसे कही अधिक शीघ्रतासे काम लिया जा रहा है । मुझे इस प्रकारका त्रुटियोसे भरा हुआ चलता काम पसन्द नहीं है। यदि प्रकाशक सेठजी इतनेपरसे ही सन्तुष्ट हो तो यह उनकी इच्छा है। मेरी रायमे तो इन सिद्धान्त-ग्रन्थोके प्रकाशनके लिये काम करनेके