________________
द्रव्य-सग्रहका अग्रेजी सस्करण
५४७ ३ उपोद्घातमे एक स्थान पर, श्रीकुदकुदाचार्यके प्रवचनसारादि ग्रथोको उमास्वामीके तत्वार्थसूत्र और सिद्धसेनके सम्मतिप्रकरणसे पीछेके बने हुए ग्रथ ( Later works ) लिखा है । परन्तु बिना किसी प्रमाणके ऐसा लिखना ठीक नही । कुदकुदका अस्तित्व सिद्धसेनादिकसे पहले पाया जाता तथा माना जाता है।
४ प्रस्तावनामे, नेमिचन्द्राचार्यके 'त्रिलोकसार' का परिचय देते हुए, लिखा है कि 'इस ग्रन्थमे पृथ्वीके घूमनेसे दिन और रात कैसे होते है, इस बातका कथन किया गया है' -"And there 18 a mention how night and day are caused by motion of the earth." परन्तु त्रिलोकसारमे पृथ्वीके घूमने आदिका कोई कथन नही है। उसमे सूर्यादिककी गतिसे दिन और रातका होना बतलाया है । अत इस लिखनेको लेखकमहाशयकी निरी कल्पना अथवा पश्चिमी सस्कारोका फल कहना चाहिये। __ ५ चामुडरायने गोम्मटसारपर जो अपने कर्णाटकदेशकी भाषामे टीका लिखी थी उसका नाम, इस ग्रन्थकी प्रस्तावनामे, 'वीरमार्तण्डी' बतलाया गया है। साथ ही यह भी लिखा है कि 'चामुडरायकी उपाधियोमेसे एक उपाधि 'वीरमार्तण्ड' होनेसे उसने अपनी उस टीकाका नाम 'वीरमार्तण्डी' रक्खा है, जिसका अर्थ है वीरमार्तण्डके द्वारा रची हुई', परन्तु इसके लिए कोई खास प्रमाण नही दिया गया। गोम्मटसारके कर्मकाडकी जिस अन्तिम गाथा ( न० ६७२) परसे यह सारी कल्पना की गई है उससे इसका भले प्रकार समर्थन नही होता । उसके 'सो राओ चिरकाल णामेण य वीरमत्तंडी' इस वाक्यमे 'वीरमार्तण्डी' चामुडरायका विशेषण है, जिसका अर्थ होता है 'वीरमार्तण्ड' नामकी