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हीराचन्दजी बोहराका नम्र निवेदन और कुछ शकाएँ ५३५ गृहस्थो तथा मुनियोसे छुडाना चाहते हैं, तो फिर वे चतुर्थसम्प्रदायको जन्म देना चाहते हैं ऐसी यदि कोई कल्पना करे तो उसमें आश्चर्यकी कौनसी बात है, जिससे बोहराजी कुछ क्षुब्ध होकर विरोधमें प्रवृत्त हुए जान पड़ते हैं-खासकर ऐसी हालतमे जब कि कानजीस्वामी अपना वक्तव्य देकर कोई स्पष्टीकरण भी करना नही चाहते ? क्योकि जैनियोके वर्तमान तीनो सम्प्रदाय प्राचीन ग्रन्योमे निर्दिष्ट हुए मुनियो तथा श्रावकोके आचारको केवलजिनप्रणीत धर्म मानते हैं और इसीसे उसकी शरण प्राप्त करना तथा उसे अपनाना अपना कर्तव्य समझते हैं। अपने-अपने महान् आचार्योंके इस कथनकी प्रामाणिकतापर उन्हे अविश्वास नही है, जब कि कानजीस्वामीको बाहर-भीतरकी स्थिति कुछ दूसरी ही प्रतिभासित होती है। ___ आशा है मेरे इस समग्न विवेचनसे श्रीबोहराजीको समुचित समाधान प्राप्त होगा और वे श्रीकानजीस्वामीकी अनुचित वकालतके सम्बन्धमे अपनी भूलको महसूस करेगे' ।
१. अनेकान्त वर्ष १३, किरण ५, ६, ७, ८, ११, १२ नवम्बर १९५४-जून १९५५