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अर्थ-समर्थन फैलेगा--म्लेच्छ देशोके निवासी जैनधर्मको धारण करेंगे'---यही अर्थ ठीक है। पडितजीने असलियतको छिपाकर जो अर्थका गोलमाल किया है और स्पष्ट अर्थको विपरीत बतलानेका जो साहस किया है वह ठीक नही किया। उन्हे खूब समझ लेना चाहिये कि अब जमाना अन्धेरेका नही है और न जबानी जमाखर्चका--इस प्रकारका गोलमाल अब आगे नही चल सकेगा। अब आचार्योंके मूल वाक्योपरसे ही अर्थका विवेचन और अवधारण हुआ करेगा; रूढियाँ या सुनी-सुनाई बाते नही मानी जायेंगी। मूल शास्त्रोको देखकर लेख लिखे जाने चाहिये, प्रमाणमे उनके वाक्य उद्धृत करने चाहिये, वैसे ही अपने खयालके मुवाफिक अटकलके तीर मार देना या अनुचित साहस कर बैठना मुनासिब नही है ।
-जैनमित्र १७-८-१९१३