________________
४९२
युगवीर-निवन्धावली कम इतना तो मालूम पडता कि उन्होंने अपनी पोजीशनका क्या कुछ स्पष्टीकरण किया है, उस समस्याका क्या हल निकाला है जो उनके सामने रखी गई है, उन आरोपोका किस रूपमे परिमार्जन किया है जो उनपर लगाये गये हैं, और लोकहृदयमे उठी एव मुंह पर आई हुई आशका को निर्मूल करनेके लिए क्या कुछ प्रयत्न किया है। मैं बरावर श्रीकानजी महाराजके उत्तर तथा वक्तव्यकी प्रतीक्षा करता रहा हूँ और एक दो बार श्री हीराचन्दजी वोहराको भी लिख चुका हूँ कि वे उन्हे प्रेरणा करके उनका वक्तव्यादि शीघ्र भिजवाएं, जिससे लगे हाथो उसपर भी विचार किया जाय और अपनेसे यदि कोई गलती हुई हो तो उसे सुधार दिया जाय, परन्तु अन्तमे वोहराजीके एक पत्रको पढकर मुझे निराश हो जाना पडा । जान पडता है कानजी स्वामी सब कुछ पी गये हैं-इतने गुरुतर आरोपोकी भी अवाछनीय उपेक्षा कर गये हैं और कोई प्रत्युत्तर, स्पष्टीकरण या वक्तव्य देना नहीं चाहते। वे जिस पदमे स्थित है उसकी दृष्टिसे उनकी यह नीति बडी ही घातक जान पड़ती है। जब वे उपदेश देते हैं और उसमे दूसरोका खण्डन-मण्डन भी करते हैं तब मेरे उक्त लेखके विषयमे कुछ कहने अथवा अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के लिये उन्हे कौन रोक सकता था ? वक्तव्य तो गलतियोगलतफहमियोको दूर करने के लिये अथवा दूसरोंके समाधानकी दृष्टिसे बड़े-बडे मन्त्रियो, सेनानायको, राजेमहाराजो, राष्ट्रपतियो और धर्म-ध्वजियो तक को देने पड़ते हैं, तब एक ब्रह्मचारी श्रावकके पदमे स्थित कानजी स्वामीके लिये ऐसी कौन बात उसमे बाधक है, यह कुछ समझमे नही आता ! वक्तव्य न देनेसे उल्टा उनके अहकारका द्योतन होता है और दूसरी भी कुछ कल्पनाओको अवसर मिलता है। अस्तु, उनका इस विषयमे