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________________ युगवीर-निवन्धावली यह भी लिखा है कि 'भरत चक्रवर्तीको दिग्विजयके समय आर्यखंडमे और महागंगाके इस पारके किनारेपर पहँचनेसे पहले भी ऐसे नगर मिले थे, जिनमें म्लेच्छ लोग रहते थे और वहाँके म्लेच्छ राजाओने चक्रवर्तीका अनेक प्रकारकी भेट देकर, सम्मान किया था। इस प्रकरणके दो श्लोक इस प्रकार है .-- "पुलिन्दकन्यकाः सैन्यसमालोकन-विस्मिताः । अव्याजसुन्दराकारा दूरादालोकयत्प्रभुः ॥ ४१ ।। चमरीबालकान् केचित्केचित्कस्तूरिकाण्डकान् । प्रभोरुपायनीकृत्य ददृशुर्लेच्छराजकाः ॥ ४२ ॥" (आदि० पर्व २८) अर्थात्--भरत चक्रवर्तीने दूरसे म्लेच्छोकी उन कन्याओको देखा जो स्वभावसे ही सुन्दराकार थी और चक्रवर्तीकी सेनाको देखकर विस्मित हो रही थी। इस प्रान्तके म्लेच्छ राजाओमेसे कुछने चमरीबाल और कुछने कस्तूरिका ( मुश्कनाफे) भेटके तौरपर पेश करके चक्रवर्तीक दर्शन किये। इससे प्रगट है कि चतुर्थकालमे भरत चक्रवर्तीके समयमें भी आर्यखंडमे म्लेच्छ देश मौजूद थे और उनमे म्लेच्छ राजा राज्य करते थे। इन सब प्रमाणोके सिवाय पडितजीको इतना और समझना चाहिये कि यदि आर्यखंडका समस्त क्षेत्र आर्य ही होता ( जैसा कि आप लिखते हैं ) और उसमे म्लेच्छ देश न होते तो 'क्षेत्रार्याः' का लक्षण वर्णन करते हुए स्वामी अकलंकदेव राजवातिकमें सिर्फ इतना ही लिख देते कि 'आर्यखंडे जाताः क्षेत्रार्याः' अर्थात् जो आर्यखंडमे उत्पन्न हो वे क्षेत्रार्य कहलाते हैं। परन्तु आचार्य महोदयने ऐसा लक्षण न लिखकर यह लक्षण लिखा है कि 'काशीकोशलादिषु जाताः क्षेत्रार्या.' अर्थात् जो काशी, कोशला
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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