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युगवीर-निबन्धावली शुद्धात्मदर्शी और जिनशासन
प्रस्तुत गाथामे आत्माको अबद्धस्पृष्टादि-रूपसे देखनेवाले शुद्धात्मदर्शीको सम्पूर्ण जिनशासनका देखनेवाला बतलाया है। इसीसे प्रथमादि चार शकाओका सम्बन्ध है। पहली शंका सारे जिनशासनको देखनेके प्रकार तरीके अथवा ढग (पद्धति ) आदिसे सम्बन्ध रखती है, दूसरीमे उस द्रष्टा-द्वारा देखे जानेवाले गिनशासनका रूप पूछा गया है, तीसरीमे उस रूपविशिष्ट जिनशासनका कुछ महान् आचार्यो-द्वारा प्रतिपादित अथवा ससूचित जिनशासनके साथ भेद-अभेदका प्रश्न है, और चौथीमे भेद न होनेकी हालतमे यह सवाल किया गया है कि तब इन आचार्यो-द्वारा प्रतिपादित एव ससूचित जिनशासनके साथ उसकी सगति कैसे बैठती है ? इनमेसे पहली, तीसरी और चौथी इन तीन शकाओके विषयमे प्रवचनलेख प्राय मौन है। उसमें बारबार इस बातको तो अनेक प्रकारसे दोहराया गया है कि जो शुद्धात्माको देखता-जानता है वह समस्त जिनशासनको देखता-जानता है अथवा उसने उसे देख-जान लिया, परन्तु उन विशेषणोके रूपमें शुद्धात्माको देखने-जानने मात्र सारे जिनशासनको कैसे देखता-जानता है या देखने-जाननेमे समर्थ होता है अथवा किस प्रकारसे उसने उसे देख-जान लिया है, इसका कही भी कोई स्पष्टीकरण नही है और न भेदाऽभेदकी बातको उठाकर उसके विषयमें ही कुछ कहा गया है, सिर्फ दूसरी शकाके विषयभूत जिनशासनके रूप-विपयको लेकर उसीके सम्बन्धमे जो कुछ कहना था वह कहा गया है। अव आगे उसीपर विचार किया जाता है।
श्रीकानजीस्वामी महाराजका कहना है कि 'जो शुद्ध आत्मा