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अर्थ-समर्थन
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इतना ही नही बल्कि 'प्रत्यन्त' शब्दके अर्थका ( म्लेच्छ देशका) अर्थ भी आप नही समझ सके हैं और इसलिये आपको एकदम यहाँ तक जोश आ गया है कि आपने बिना प्रयोजन भरतक्षेत्रके खडोकी चौडाई तक लिख डाली और साथ ही योजनोके कोस और गज भी बना डाले। इसी जोशमें आकर पडितजी अपनेको जैन भूगोलका मर्मी समझते हुए एक स्थानपर लिखते हैं कि 'बाबू साहबने जैनका भूगोल नही देखा', अस्तु इसके लिये मुझे कुछ कहने या लिखनेकी जरूरत नहीं है। सभव है कि मैने जैनका भूगोल न देखा हो और अव पडितजीके प्रसादसे ही मुझे उसका ज्ञान प्राप्त हो जाय । परन्तु पडितजीसे मेरा इतना निवेदन जरूर है कि वे कृपाकर इस बातको अवश्य बतलाएँ कि मेरे उस लेखमे 'म्लेच्छखंड' शब्द कहां पर आया है ? और मैने उसमे किस स्थानपर किन देशोको म्लेच्छखंड माना है ? जिसके कारण आपको यह लिखनेकी तकलीफ उठानी पड़ी कि 'जिनको बाबू साहबने म्लेच्छखड मान लिया सो म्लेच्छखड नही, वरन क्षेत्र आर्यखड व जीव-वध करने, मासादि खानेसे कर्मम्लेच्छ है'। प्रत्येक पाठक जैनमित्र अक १० को देखकर मालूम कर सकते हैं कि मेरे उक्त लेखमे कही भी 'मलेच्छखंड' का नाम व निशान नही है और न किसी स्थानपर उसमे यह स्वीकार किया गया है कि अमुक-अमुक देश म्लेच्छखड है। फिर नही मालूम पडितजीने किस आधारपर ऐसा असत्य लिखनेका साहस किया है ? शायद पडितजीने यह समझा हो कि म्लेच्छखंडो ही में म्लेच्छदेश होते हैं, आर्यखंडमे म्लेच्छदेश नहीं होते। और इसीलिये आपने अपनी कल्पनासे म्लेच्छदेशको म्लेच्छखंडमें परिवर्तित (तबदील ) कर .दिया हो। यदि ऐसा हुआ है तो पडितजीने बडी भारी भूल की