SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०८ युगवीर-निवन्धावली कि "दस्साओंके पूजनाधिकारको सिद्ध करनेके लिए ही आप (व्याकरणाचार्यजी) समोशरणमे शूद्रोका उपस्थित होना बतलाते हैं। इसके अनन्तर-"तो इसके लिए हम आदिपुराण और उत्तरपुराण आपके समक्षमे उपस्थित करते है" ऐसा लिखकर व्याकरणाचार्यजीको बाध्य करते हैं कि वे उक्त दोनो ग्रन्थोंके आधारपर “शूद्रोका किसी भी तीर्थकरके समोशरणमे उपस्थित होना प्रमाणो द्वारा सिद्ध करके दिखलावें।" साथ ही तर्कपूर्वक अपने जजमेटका नमूना प्रस्तुत' करते हुए लिखते हैं-''यदि आप इन ऐतिहासिक ग्रन्थो द्वारा शूद्रोका समोशरणमे जाना सिद्ध नही कर सके तो दस्साओके पूजनाधिकारका कहना आपका सर्वथा व्यर्थ सिद्ध हो जाएगा" और फिर पूछते हैं कि ""सङ्गठनकी आड लेकर जिन दस्सामओको आपने आगमके विरुद्ध उपदेश देकर पूजनादिका अधिकारी ठहराया है उस पापका भागी कौन होगा ?" इसके बाद, यह लिखकर कि "अब हम जिस आगमके विरुद्ध आपके कहनेको मिथ्या बतलाते हैं उसका एक प्रमाण लिखकर भी आपको दिखलाते है", जिनसेनाचार्यकृत हरिवशपुराणका ‘पापशीला विकुर्वाणाः' नामका एक श्लोक यह घोषणा करते हुए कि उसमे "भगवान नेमिनाथके समोशरणमे शूद्रोके जानेका स्पष्टतया निषेध किया है" उद्धृत करते हैं और उसे ५६वे सर्गका १६०वा श्लोक बतलाते हैं। साथ ही पण्डित गजाधरलालजीका अर्थ देकर लिखते हैं-"हमने यह आचार्य 'वाक्य आपको लिखकर दिखलाया है आप अन्य ऐतिहासिक ग्रथो (आदिपुराण-उत्तरपुराण) के प्रमाणो द्वारा इसके अविरुद्ध सिद्ध करके दिखलावें और परस्परमें विरोध होनेका भी ध्यान अवश्य रक्खें।"
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy