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युगवीर-निवन्धावली
ध्वनित है और सूलाचारकी लिम्न गाथाओंले भी प्रक्ट है, जिनसे पहली गाथा गोम्मटसारमें भी नं० १८५ पर पायी जाती है :
मूलग्गपोरवीजा कंदा तह पंधवीज-चीजरहा। सम्मुच्छिसा य भणिया पत्तेया पंतकाया य ॥२१२ ॥ कंदा मूला छल्ली खंधं पत्तं पवाल-पुप्फ-फलं। गुच्छा गुस्मा वल्ली तणाणि तह पव्व काया य ॥२१३॥
ऐसी हालतसे कन्द-मूलो और दूसरी वनस्पतियोंमें अनन्तकायकी दृष्टिले आसतौरपर कोई विशेष भेद नहीं रहता।"
साथ ही कन्द-मूलके त्यागियोको चेतावनी देते हुए लिखा था
"अतः जो लोग अनन्तकायकी दृष्टिसे कच्चे कन्द-मूलोंका त्याग करते है उन्हें इस विषय में बहुत कुछ सावधान होनेकी जरूरत है। उनका सम्पूर्ण त्याग विवेकको लिये हुए होना चाहिये। अविवेकपूर्वक जो त्याग किया जाता है वह कायकष्टके सिवाय किसी विशेष फलका दाता नहीं होता। उन्हें कन्द-सूलोंके नासपर ही मुलकर सबको एकदम अनन्तकाय न समझ लेना चाहिये। वल्कि इस बातकी जाँच करनी चाहिये कि कौन-कौल कन्द-मूल अनन्तकाय हैं और कौन-कौन अनन्तकाय नहीं है, किस कन्द-सूलका कौन-सा अवयव (अंग) अनन्तकाय है और कौनसा अनन्तकाय नहीं है। साथ ही यह
मूले कन्दे छल्ली पवाल-साख-दल-कुसुम-फल-बीजे । समभगे सदि णता असमे सदि होंति पत्तेया ॥ १८७ ॥ कदस्स व मूलस्स व साखा खंधस्स वा वि बहुलतरी । छल्ली लाणतजिया पत्तेयजिया तु तणुकदरी ।। १८८ ॥ बीजे जोणीभूदे जीवो चकमदि सो व अण्णो वा । जे वि य सलादीया ते पत्तेया पढमदाए ।। १८९ ॥