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- युगवीर-निवन्धावली वह माना जाता है। उसके अनुसार बुद्ध-निर्वाण ई० सन् से ५४४ वर्ष पहले हुआ है। इससे भी महावीर-निर्वाण बुद्ध-निर्वाणके बाद वैठता है। .
(७) चूंकि मक्खलिपुत्तकी, जो कि बुद्धके छह प्रतिस्पर्धी तीर्थकरोमेसे एक था, मृत्यु बुद्ध-निर्वाणसे प्रायः एक वर्ष पहले ही हुई है और बुद्ध-निर्वाण भी-उक्त मृत्यु-समाचारसे प्राय एक वर्ष वाद माना जाता है। दूसरे, जिस पावामे मृत्युका होना लिखा है, वह पावा महावीरकी निर्वाण-क्षेत्रवाली पावा नहीं है बल्कि दूसरी ही पावा है जो बौद्धपिटुकानुसार गोरखपुरके जिलेमे स्थित कुशीनाराके पासका कोई ग्राम है। तीसरे, कोई सघ-भेद भी महावीरके निर्वाणके अनन्तर नही हआ, बल्कि गोक्षालकको मृत्यु जिस दशामे हुई है उससे उसके सघका विभाजित होना बहुत कुछ स्वाभाविक है । ऐसी हालतमे 'सामगामसुत्त'मे वर्णित उक्त मृत्यु तथा सघभेद समाचारवाली घटनाका महावीरके साथ कोई सम्बन्ध मालूम नही होता । वहुत सभव है कि वह मखलिपुत्त गोशालकी मृत्युसे सम्बन्ध रखती हो और 'पिटक' ग्रन्योको लिपिवद्ध करते समय किसी भूल-आदिके वश इस सूत्रमे मक्खलिपुत्तकी जगह नातपुत्तका नाम प्रविष्ट हो गया हो। , इन सवः प्रमाणोमेसे किसीका भी कोई खडन न करते हुए ब्रह्मचारीजी एक युक्तिपुरस्सर निर्णय पर आपत्ति करने चले हैं ? यह देखकर बडा ही आश्चर्य होता है । आपका मन्तव्य है - ___ "सामगामसुत्त न० १०४ के शब्दोसे यह कभी भ्रम नहीं होता कि निर्ग्रन्य श्री महावीर भगवान्के सिवाय किसी औरका कथन हो। वहाँ साफ लिखा है कि 'चन्दो ( चुन्द ) ने आनन्दको खबर की कि निग्गथ नातपुत्त प्रावामे अभी निर्वाण हुए।' वह यह भी