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युगवीर-निवन्धावली
या गणधरादिक मुनियोने उपदेश दी हैं इनका उपदेश अनादिनिधन श्रुतज्ञानसे होता आया है, श्रावकोने अपनी रुचि, भक्ति और शक्तिके अनुसार कल्पित नही की है ।"
मानो आपकी समझमे 'कथंचित्' शब्दका कुछ उपयोग ही नही । वह मूलमे व्यर्थ प्रयुक्त हुआ है । और उसे छोड देनेपर ( जैसाकि आपने अपने नतीजेमे छोड दिया है ) 'उपदेश दिया' और 'उपदेश नही दिया' मे परस्पर कोई विरोध नही रहता ||| ऐमी विलक्षण समझकी वलिहारी है । और उसका जितना भी गुण-गान किया जाय थोडा है ॥
क्रियाओका उपदेश
वास्तवमे 'कथचित्' का अर्थ है 'केनचित् प्रकारेण' - किसी प्रकारसे - और वह 'सर्वथा' अथवा 'सर्वप्रकारसे' का विरोधी होता है तब भगवानने 'कथचित्' उपदेश दिया इसका अर्थ होता है भगवानने किसी प्रकारसे उपदेश दिया - सर्वथा नही । भगवानके उपदेशका वह प्रकार कौन-सा है जो यहाँ विवक्षित है, इसकी पर्यालोचना करनेपर यह मालूम होता है कि पूर्ववर्ती पद्यमे एक शकाका निराकरण करते हुए जव निश्चित तथा नियमितरूपसे यह कथन किया गया है कि भगवानने उन नही दिया तब यहाँ कथचित् उपदेश देनेका अभिप्राय यह नही हो सकता कि भगवानने किसीको उन क्रियाओके करनेका सीधा, साक्षात् वराहेरास्त, स्पष्ट अथवा ( Direct ) कोई उपदेश - विशेष दिया है वल्कि यही हो सकता है कि भगवानके द्वारा किसी दूसरे प्रकारसे कर्मप्रकृतियोके आस्रवके कारणो तथा कर्मफलको बतलाते हुए, वे क्रियाए सामान्य अथवा कथचित् विशेषरूपमे या किसी एक निर्दोष पर्यायरूपमे उपदिष्ट या उल्लेखित हुई हैं, अथवा भव्यजीवोने भनवान्के उपदेशादिका