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उपासना-विषयक समाधान
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नही है - जो जिनेन्द्र भगवान्का उपदेश है वही उनकी आना, शासन अथवा आदेश ह ।' उपदेश आदेश मेदकी यह पता प्राय छद्मस्थ ज्ञानी आचायों आदि के कथनमें पाई जाती हैसर्वज्ञ भगवान् के कथनमें नहीं । सर्वज्ञने हेय उपादेयत्पते दो प्रकारका तत्त्व प्रतिपादन किया है, वन्ध तथा बध कारणांको हेय और मोक्ष तथा मोक्षके कारणोको आदेव बतलाया है । और उस तरहपर प्रवृत्ति तथा निवृत्ति दोनो ही रूपने अपनी आज्ञाको प्रवर्तित किया है आपका शासन विधि-निषेधात्मक है - और जगह-जगह शास्त्रोंमें इस प्रकारका उल्लेख भी मिलता है कि भगवान्ने भव्य जीवोको मोक्षमार्ग सिखाया, उन्हें श्रेयोमार्गमे लगाया, यम और दमका - व्रतोके पालन तथा इन्द्रियोके निग्रहका आदेश दिया, वे सासारिक विषयतृष्णादि रोग से पीडित प्राणियोके रोग शान्त करनेके लिये एक आकस्मिक ( द्रव्यादि अपेक्षारहित परोपकारी ) वैद्यकी तरह वैद्य है और एक माता जिस प्रकार अपने बालकको हितका अनुशासन करती है-बुरे कामोमे हटाकर अच्छे कामोमे लगाती है—उसी तरह आप्त
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९ आदेश के अर्थ भी आजा और उपदेश दोनों हैं, शासन तथा अनुमति भी उसके अर्थ हैं। देखो 'शब्दकल्पद्रुम' |
२ यथा
" तापत्रयोपततेभ्यो भव्येभ्यः शिवशर्मणे । तत्त्वं यमुपादेयमिति द्वेधाऽभ्यधादसौ ॥" "बन्धो निबन्धन चास्य हेयमित्युपर्शितम् । मोक्षस्तत्कारण चैतदुपादेयमुदाहृतम् ।
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