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युगवीर-निवन्धावली एक ही बात है। दूसरे शब्दोमे यो कहना चाहिए कि बडजात्याजीने 'अनुष्ठित' का अर्थ "निर्मित' किया है और निर्मित तथा रचित ये कल्पितके पर्यायार्थ हैं, जैसा कि ऊपर जाहिर किया जा चुका है।' इससे भी अनुष्ठितके साथ कल्पितकी प्राय अर्थ-साम्यता पाई जाती है, फिर नही मालूम वडजात्याजी किस आधारपर आपत्ति करने बैठे हैं। क्या कल्पित शब्दके नामसे ही आपको घबराहट पैदा होती है या कल्पितका झूठा, वनावटी अथवा 'मनगढन्त' अर्थ समझ लेनेका ही यह सारा खोट है ? महाशयजी । कल्पित वातो अथवा कल्पनाओसे इतना न घवराइये, कल्पित वाते या कल्पनाएँ सव झूठी अथवा बुरी नही होती। किसी समय कल्पित की गई मुद्रणकला आदिकी कल्पनाएँ ( ईजाद ) लोकके लिए कितनी उपकारक बनी हुई हैं। कल्पनाओके आधारपर नो सम्पूर्ण जगतका कार्य-व्यवहार चल रहा है- शब्दशास्त्र, अर्थशास्त्र, आचारशास्त्र, समाजशास्त्र, न्यायशास्त्र, छद शास्त्र, अलकारशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, वैद्यकशास्त्र और रसायनशास्त्र सव कल्पनाओसे परिपूर्ण है-यह पुत्र है, यह भार्या, यह भाई
और यह बहन और यह वह इनका कर्तव्य कर्म है, इत्यादि व्यवहार सब कल्पनाके ही आश्रित हैं। व्यवहार सब कल्पित होता ही है ।२ मूर्तिको देवता कहना अथवा मूर्ति आदिमे किसी देवता आदिकी स्थापना करना भी कल्पना ही है और रगे-चावलोको
१. शास्त्रीजीने 'अनुष्ठिताः' का अर्थ 'की है। दिया है और यह अर्थ 'कृत' शब्दके अर्थसे भिन्न नहीं है जो कि कल्पितका ही पर्याय नाम अथवा अर्थ विशेष है।
२. इसीसे 'उन्हे अपने व्यवहारके लिये कल्पित किया' यह वाक्यप्रयोग बहुत ही समुचित जान पडता है।