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युगवीर-निबन्धावली प्रकार जिनदास ब्रह्मचारीके हरिवशपुराणसे सिर्फ एक वाक्य ("इति पृष्ठः सतामूचे मा भैषी शृणु वल्लो") उद्धृत करके उसमे आए हुए 'वल्लभे' विशेपणकी बावत लिखा है-'ये भी पत्नीके लिये ही होता है। परन्तु ये विशेपण पति-पत्नीके लिये ही प्रयुक्त होते है-अन्यके लिये नही-ऐसा कही भी कोई नियम नही देखा जाता। शब्दकोषके देखनेसे मालूम होता है कि आर्यपुत्र "आर्यस्य पुत्र'"-आर्यके पुत्रको, "मान्यस्य पुत्र"-मान्यके पुत्रको और "गुरुपुत्र"..---गुरुके पुत्रको भी कहते हैं ( देखो 'शब्दकल्पद्रुम' )। 'आर्य' शब्द पूज्य, स्वामी, मित्र, श्रेष्ठ, आदि कितने ही अर्थोमे व्यवहत होता है और इसलिये 'आर्यपुत्र' के और भी कितने ही अर्थ तथा वाच्य होते हैं। वामन शिवराम आप्टेने, अपने कोशमे, यह भी बतलाया है कि आर्यपुत्र 'बडे भाईके पुत्र' और 'राजा' के लिये भी एक गौरवान्वित विशेपणके तौरपर प्रयुक्त होता है। यथा :-आर्यपुत्र ---honorrific designation of the son of the elder brother, or of a prince by his general &c.
ऐसी हालतमे एक मान्य और प्रतिष्ठित जन तथा राजा समझकर भी उक्त सम्बोधन पदका प्रयोग हो सकता है और उससे यह लाजिमी नहीं आता कि उनका विवाह होकर पतिपत्नी सवध स्थापित हो गया था। इसी तरह पर "प्रिया' और 'वल्लभा' शब्दोके लिये भी, जो दोनो एक ही अर्थके वाचक है, ऐसा नियम नही है कि वे अपनी विवाहिता स्त्रीके लिये ही प्रयुक्त होते हो-वे साधारण स्त्रीमात्रके लिये भी व्यवहृत होते हैं, जो अपनेको प्यारी हो। इसीसे उक्त आप्टे साहबने "प्रिया' का अर्थ a woman in general और वल्लभा