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युगवीर-निवन्धावली
रण आचारका उल्लेख किया गया है और उसी म्लेच्छाचारसे इन अधम द्विजोके आचारकी तुलना की गई है—न कि इन्हीका उक्त पद्यमे आचार बतलाया गया है। इसी प्रकरणके एक दूसरे पद्यमे भी इन लोगोके आचारको म्लेच्छाचारकी उपमा दी गई है। लिखा है कि 'तुम निर्वत हो ( अहिंसादिवतोके पालनसे रहित हो ), निमस्कार हो, निर्दय हो, पशुघाती हो
और ( इसी तरहके और भी) म्लेच्छाचारमे परायण हो, तुम्हे धार्मिक द्विज नही कह सकते । यथा -
निव्रता निर्नमस्कारा निघृणा पशुघातिनः । म्लेच्छाचारपरा यूय न स्थाने धार्मिका द्विजाः ॥ १९० ॥
इससे भी हिसामे रति' आदि म्लेच्छोके साधारण आचरणका पता चलता है। परन्तु इतनेपर भी समालोचकजी लेखककी इस बातको स्वीकार करते हुए कि "अच्छे-अच्छे प्रतिष्ठित, उच्च कुलीन और उत्तमोत्तम पुरुपोने म्लेच्छराजाओकी कन्याओसे विवाह किया है", लिखते हैं -
"ठीक है हम भी इस बातको मानते हैं कि चक्रवर्ती म्लेच्छखडके राजाओकी कन्याओसे विवाह कर लाते थे लेकिन वे क्षेत्रकी अपेक्षासे म्लेच्छ राजा कहाते थे। यह बात नही है कि उनके आचरण भी नीच हो या वे मॉसखोर व शराबखोर हो अथवा आपके लिखे अनुसार हिंसामे रति, मॉसभक्षणमे प्रीति रखने वाले और जबरदस्ती दूसरोका धन हरण करने वाले हो । बाबू साहब, आपकी लिखी हुई यह बातें उन म्लेच्छ राजाओमे कभी नही थी। आपने जो म्लेच्छोके आचरण सबन्धी श्लोक दिया है वह केवल जनतामे भ्रम फैलानेके लिये ऊपर-नीचेका सवन्ध छोडकर दिया है।