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युगवीर-निवन्धावली "यदि थोडी देरके लिये यह मान लिया जाय कि किसी मलेक्षकी ही कन्या होगी तो मलेक्ष भी कितने ही प्रकारके शास्त्रोमे कहे हैं। जिनमे एक क्षेत्र-मलेक्ष भी हैं जो कि देश अपेक्षा मलेक्ष कहाते हैं । लेकिन कुलाचार बुरा ही होता है, ऐसा नियम नही। जैसे पजाबमे रहनेवाले हर एक कौमके पजावी कहाते है, और बगालमे रहनेवालोको वगाली तथा मदरासमे रहनेवालोको मदरासी कहते हैं किन्तु उन सबका आचरण एक-सा नहीं होता। इन देशोमे सब ही ऊँच-नीच जातियोके मनुष्य रहते हैं फिर यह कहना कि अमुक मनुष्य एक मदरासी या पजावी लडकीके साथ शादी कर लाया, यदि उसीकी जातिकी ऊंच खानदानकी लडकी हो तो क्या हर्ज है । इसलिये बाबू साहव जो लिखते हैं कि वह कन्या नीच थी, यह वात सिद्ध नही हो सकती नीच हम जब ही मान सकते हैं जव कि कन्याके जीवनचरित्रमे कुछ नीचता दिखलाई हो।"
अपने इन वाक्यो-द्वारा समालोचकजीने यह सूचित किया है कि वे म्लेच्छखडो ( म्लेच्छक्षेत्रो) को पजाव, वगाल तथा मदरास जैसी स्थितिके देश समझते हैं, उनमे सब ही ऊंचनीच जातियोके आर्य-अनार्य मनुष्योका निवासं मानते हैं और यह जानते हैं कि वहाँ ऐसे लोग भी रहते हैं जिनका कुलाचार बुरा नही है। इसीलिये सभव है कि 'वसुदेव' वहीसे अपनी ही जातिकी और किसी ऊँचे वशकी यह कन्या (जरा) विवाह कर ले आए हो। परन्तु समालोचकजीका यह कोरा भ्रम है और जैनशास्त्रोसे उनकी अनभिज्ञताको प्रकट करता है। 'वसुदेव' 'जरा' को किसी म्लेच्छ-खडसे विवाह कर नही लाए, बल्कि वह चपापुरीके निकट, प्रदेशमे भागीरथी गंगाके आसपास रहने