________________
विवाह-क्षेत्र-प्रकाश
१२९
हमे इस पद्यके अस्तित्वपर आपत्ति करनेकी कोई जरूरत नही है । इसमे 'कंसमातुलाजानीता' नामका जो विशेपण पद है उससे यह वात नही निकलती कि देवकी कसके मामाकी लडकी थी, बल्कि कसके मातुलपुत्र द्वारा वह लाई गई थी (कसमातुलजेन आनीता ता= कसमातुलजानीता), यह उसका अर्थ होता है। कसका मामा जरासध था। जरासधके किसी पुत्र-द्वारा देवकी दशार्णपुरसै मथुरा लाई गई होगी, उसीका यहांपर उल्लेख किया गया है। पिछले दोनो पद्योमे 'कन्या' पदके जितने भी विशेपण पद हैं वे सव द्वितीया विभक्तिके एकवचन है और इसलिये "कंसमातुलजानीता" पद का दूसरा कोई अर्थ नहीं होता, जिससे देवकीको कसके मामाकी पुत्री ठहराया जा सके । इस नेमिपुराणकी भापाटीका पडित भागचन्दजीने की है। उन्होने भी इन पद्योकी टीकामे देवकीको कसके मामाकी पुत्री अथवा दशार्णपुरके देवसेन राजाको कसका मामा नही बतलाया, जैसा कि उक्त टीकाके निम्न अशसे प्रकट है -
"मृगावती देशविपै दशार्णपुर तहाँ देवसैन राजा अर धनदेवी रानी तिनकी देवकीनामा पुत्री मॅगाय मानों दूसरी देवॉगनाही है ताहि महोत्सवकर सहित वसुदेवके अर्थ देता भया। वसुदेव ता सहित तिष्ठे।"
-नानौताके एक जैनमदिरकी प्रति । १. देहलीके नये मदिरकी दूसरी प्रति और पचायती मदिरकी प्रतिमे भी मध्यका श्लोक जरूर है परन्तु उनमें इस पदकी जगह "कसमातुल आनीता [ ता]" ऐसा पाठ है, जिसका अर्थ होता है 'कसके मामा द्वारा लाई हुई। परन्तु वह मामा द्वारा लाई गई हो या मामाके पुत्र द्वारा, किन्तु मामाकी पुत्री नहीं थी, यह स्पष्ट है।