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विवाह-क्षेत्र-प्रकाश तत. क्रमाच्छीजिनसेननाम्नाचार्येण जैनागमकोविदेन । सत्काव्यकेलीसदनेन पृथ्व्यां नीत प्रसिद्धिं चरित हरेश्च ॥३५॥ श्रीनेमिनाथस्य चरित्रमेतदाननं (१) नीत्वा जिनसेनसूरेः। समुद्धृत स्वान्यसुखप्रबोधहेतोश्विर नन्दतु भूमिपीठे ॥४१॥"
-४० वॉ सर्ग। और यश कीर्तिने भी अपने प्राकृत हरिवशपुराणको जिनसेनके आधारपर लिखा है। वे उसके शब्द-अर्थका सम्वध जिनसेनके शास्त्र ( हरिवशपुराण ) से बतलाते हैं । यथा - अइ महंत पिकिश्व वि जणु सकिउ । ता हरिवसु मइमिर्डहिकिउ । सद्द-अत्यसबधु फुरंतउ । जिणसेणहो सत्तहो यहु पयडिउ ।।
इन उल्लेखोसे स्पष्ट है कि उक्त नेमिपुराणादि चारो ग्रथ जिनसेनके हरिवशपुराण और गुणभद्रके उत्तरपुराणके आधारपर लिखे गये हैं और इसलिये इनमेसे यदि किसीमे देवकीको कसकी या कसके भाई अतिमुक्तककी वहन ( स्वसा), छोटी बहन ( अनुजा ) अथवा राजा उनसेनके भाईकी पुत्री ( भ्रातृशरीरजा, इत्यादि ) नही लिखा हो तो इतने परसे ही वह किसी दूसरे देवसेनकी पुत्री नही ठहराई जा सकती, जबतक कि कोई स्पष्ट कथन ग्रथमे इसके विरुद्ध न पाया जाता हो। और यदि इन ग्रथोमेंसे किसीमें ऐसा कोई विरोधी कथन हो भी तो वह उस ग्रन्थकारका अपना तथा अर्वाचीन कथन समझना चाहिये, उसे जिनसेनके हरिवशपुराण और गुणभद्रके उत्तरपुराणपर कोई महत्त्व नही दिया जा सकता। परन्तु इन ग्रन्थोमे ऐसा कोई भी विरोधी कथन मालूम नही पडता, जिससे देवकी राजा उग्रसेनके भाई देवसेनसे भिन्न किसी दूसरे देवसेनकी पुत्री ठहराई जा सके।
१ जिनदास ब्रह्मचारीके हरिवगपुराणमें तो उन तीनो अवसरोंपर