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युगवीर-निवन्धावली
"भविता यो हि देवक्या गर्भेऽवश्यमसौ शिशुः । पत्युः पितुश्च ते मृत्युरितीय भवितव्यता ॥ ३६॥ ततो भीतमतिर्मुक्त्वा मुनिं साश्रुनिरीक्षणा । गत्वा न्यवेदयत्सैतत्सत्य यतिभापितम् ॥ ३७ ॥ श्रुत्वा कसोपि शकावानाशु गत्वा पदानतः । वसुदेवं वरं वत्रे तीव्रधी. सत्यवाग्व्रतम् ॥ ३८ ॥ स्वामिन्वरप्रसादो में दातव्यो भवता ध्रुवम् । प्रसूतिसमये वासो देवक्या मद्गृहेऽस्त्विति ॥ ३९ ॥ सोऽयविज्ञातवृत्तान्तो दत्तवान्वरमस्तधीः । नापायः शक्यते कश्चित्सोदरस्य गृहे स्वसुः ॥ ४० ॥"
टीका --- " ( मुनिने कहा ) या देवकीके गर्भ विषै ऐसा पुत्र होयगा जो तेरे पतिकूँ अर पिताकूँ मारेगा || ३६ || तब यह जीवजशा अश्रुपात करि भरे हैं नेत्र जाके सो जायकर अपने पतिकूँ मुनिके कहे हुए वचन कहती भई || ३७ ॥ तव कस ए वचन सुनकर शकावान होय तत्काल वसुदेव पै गया अर वर माग्या ।। ३८ ।। कही हे स्वामी, मोहि यह वर देहु जो देवकीकी प्रसूति मेरे घर होय । सो वसुदेव तो यह वृत्तान्त जानें नाही || ३६ || विना जाने कही तिहारे ही घर प्रसूतिके समै वह निवास करहु । यामे दोष कहा । वहन का जापा भाईके घर होय यह तो उचित ही है । या भाँति वचन दिया ॥ ४० ॥"
इन पद्योमे से २९वे, ३३वें और ४० वें पद्यमे यह स्पष्टरूप से घोषित किया गया है कि देवकी कंसकी बहन थी, कसके बडे भाई अतिमुक्तककी बहन थी और कस उसका 'सोदर' था । 'सोदर' शब्दको यहाँ आचार्य महाराजने खासतौरपर अपनी ओरसे प्रयुक्त किया है और उसके द्वारा देवकी और कंसमे बहनभाईके अत्यन्त निकट सम्बन्धको घोषित किया है । 'सोदर' कहते