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युगवीर-निवन्धावली आहारके लिये कंसके घरपर आए। उस समय कंसकी रानी जीवद्यशा उन्हे प्रणाम कर वडे विभ्रमके साथ उनके सामने खडी हो गयी और उसने देवकीका रजस्वल वस्त्र मुनिके समीप डालकर हँसी-दिल्लगी उडाते हुए उनसे कहा 'देखो | यह तुम्हारी बहन देवकीका आनन्द वस्त्र है'।
इसपर ससारकी स्थितिके जाननेवाले मुनिराजने अपनी वचन-गुप्तिको भेदकर खेद प्रकट करते हुए, कहा 'अरी क्रीडनशीले । तू शोकके स्थानमे क्या आनद मना रही है, इस देवकीके गर्भसे एक ऐसा पुत्र उत्पन्न होनेवाला है जो तेरे पति और पिता दोनोके लिये काल होगा, इसे भवितव्यता समझना।' मुनिके इस कथनसे जीवद्यशाको वडा भय मालूम हुआ और उसने अश्रुभरे लोचनोसे जाकर वह सव हाल अपने पतिसे निवेदन किया। कंस भी मुनि-भापणको सुनकर डर गया और उसने शीघ्र ही वसदेवके पास जाकर यह वर माँगा कि 'प्रसूतिके' समय देवकी मेरे घरपर रहे'। वसुदेवको इस सव वृत्तान्तकी कोई खवर नही थी और इसलिये उन्होने कंसकी वर-याचनाके गुप्त रहस्यको न समझकर वह वर उमे दे दिया । सो ठीक है 'सहोदरके घर वहनके किसी नाशकी कोई आशका भी नहीं की जिनदास व्रहाचारीके हरिवंशपुराणसे मालम होता है, जिसका एक पत्र इस प्रकार है:
उग्रसेनात्मजो ज्येष्टोऽतिमुक्तक इतीरितः ।
भवस्थितिमिमा वीक्ष्य दध्याविति निजे हृदि ॥१२-६१ ॥ परन्तु ब्रह्मनेमिदत्त अपने कथाकोगमे इन्हे कसका छोटा भाई लिखते हैं । यथा--
"तदा कसलघुभ्राता दृष्ट्वा ससारचेष्टितम् । अतिमुक्तकनामासौ सजातो मुनिसत्तम ॥