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युगवीर निवन्धावली
सेवा-मदिर-जैसी सस्थाओकी प्रारभमें प्राय अपने ही एकाकी बलबूते पर स्थापना की, जैनगजट, जैनहितैपी और अनेकान्त जैसे पत्र-पत्रिकाओका उत्तम सम्पादन किया--अनेकान्त तो स्वय उन्हीकी पत्रिका रही, जिसने जैन-पत्रकारिताके क्षेत्रमे सर्वोच्च मान स्थापित किया। अनेक प्राचीन ग्रन्थोका उन्होंने जीर्ण-शीर्ण पाडुलिपियोपरसे उद्धार किया और उनमेंसे कईको सुसम्पादित करके प्रकाशित किया। पुरातन-जैनवाक्य-सूची, जैनग्रन्थ-प्रशस्तिसग्रह, जैनलक्षणावली जैसे महत्त्वपूर्ण सन्दर्भग्रन्थ तैयार किये और कराये। कई ग्रन्थोके अद्वितीय अनुवाद, भाष्य आदि रचे और ग्रन्थोकी शोधखोजपूर्ण विस्तृत प्रस्तावनाएं लिखी । अनेक तथाकथित प्राचीन ग्रन्थोंके मार्मिक परीक्षण लिखे और प्रकाशित किये। कई नवीन प्रकाशनोकी विस्तृत एव गभीर समालोचनायें की। आज भी हेमचन्द्रके योगशास्त्र पर एक अधुना अज्ञात दिगम्बरी टीका पर, अमितगतिके योगसारप्राकृतके स्वरचित भाष्य पर तथा कल्याणकल्पद्रुम स्त्रोत्रपर मनोयोगसे कार्य कररहे है । आपने कविता भी की-सस्कृत और हिन्दी दोनो भापाओमें और उच्चकोटिकी की। स्वामिसमन्तभद्र आपके परम इष्ट है और उनके हार्टको जितना और जैसा मुख्तार साहवने समझा है वैसा शायद वर्तमान विद्वानोमेंसे अन्य किसीने नही। आज, इस वृद्धावस्थामें भी, वे एक अद्वितीय 'समन्तभद्रस्मारक' की स्थापनाका तथा 'समन्तभद्र' नामक एक पत्र-द्वारा आ० समन्तभद्रके विचारोका देशविदेशमें प्रचार करनेका स्वप्न वडी उत्कठाके साय देख रहे है। जिस विषयपर और साहित्यके जिस क्षेत्रमें भी आपने कदम उठाया, वडा ठोस कदम उठाया । जैन जगतमें साहित्यैतिहासिक अनुसधानमें वे अपने समयमें सर्वाग्रणी रहे हैं । पत्र-सम्पादनमें अभीतक कोई उनके स्तरको नही पहुँच सका और समालोचना तो कोई वैसी करता ही नहीं। अपने समयमें समाजमें उठने और चलनेवाले प्राय सभी प्रगतिगामी आन्दोलनोमे उनका प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष योग रहा है। अस्तु, लगभग सात दशको पर व्याप्त उनके दो सौ से भी अधिक लेख-निबन्धादि, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओमें समय सयय पर प्रकाशित हुए हैं, जहां एक ओर मुख्तार साहबके व्यक्तित्वके, उनकी प्रकृति और शैलीके और उनके पाडित्य एव प्रामाणिकताके परिचायक हैं वहाँ वे