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________________ १०० युगवीर-निवन्धावली इसपर यदि कोई आपत्ति करनी थी तो वह या तो जिनसेनाचार्यको लक्ष्य करके करनी चाहिये थी-उनके कथनको मिथ्या ठहराना अथवा यह बतलाना चाहिए था कि वह अमुक-अमुक जैनाचार्यों तथा विद्वानोके कथनोके विरुद्ध है-और या वह इस रूपमें ही होनी चाहिए थी कि लेखकका उक्त कथन जिनसेनाचार्यके हरिवशपुराणके विरुद्ध है, और ऐसी हालतमे जिनसेनाचार्यके उन विरोधी वाक्योको दिखलाना चाहिए था। परन्तु समालोचकजीने यह सब कुछ भी न करके उक्त कथनको “सफेद झूठ' लिखा है और उसे वैसा सिद्ध करनेके लिए जिनसेनाचार्यका एक भी वाक्य उनके हरिवणपुराणसे उद्धृत नहीं किया, यह वडी ही विचित्र वात है। हाँ, अन्य विद्वानोके बनाये हुए पाडवपुराण, नेमिपुराण, हरिवशपुराण, उत्तरपुराण और आराधनाकथाकोश नामक कुछ दूसरे ग्रन्थोके वाक्य जरूर उद्धृत किये हैं और उन्हीके आधारपर लेखकके कथनको मिथ्या सिद्ध करना चाहा है, यह समालोचनाकी दूसरी विचित्रता है। और इन दोनो विचित्रताओमे समालोचकजीकी इस आपत्तिका सारा रहस्य आ जाता है। सहृदय पाठक इसपरसे सहजमे ही इस बातका अनुभव कर सकते हैं कि समालोचकजी, इस आपत्तिको करते हुए, समालोचकके दायरेसे कितने बाहर निकल गये और उसके कर्त्तव्यसे कितने नीचे गिर गये हैं। उन्हे इतनी भी समझ नही पड़ी कि लेखक अपने कथनको जिनसेनाचार्यके हरिवशपुराणके आधारपर स्थित कर रहा है और इसलिए उसके विपक्षमे दूसरे ग्रन्थोके वाक्योको उद्धृत करना व्यर्थ होगा, उनसे वह कथन मिथ्या नही ठहराया जासकता, उसे मिथ्या ठहरानेके लिए जिनसेनाचार्यके वाक्य ही पर्याप्त हो सकते है और यदि वैसे कोई विरोधी वाक्य उपलब्ध नहीं हैं तो या तो
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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