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समयसार-वंभव
एक महत्वपूर्ण प्रश्न यदि चेतन नहि देहमयी है, तब प्राचार्य तथा जिनदेवसंबंधित सम्पूर्ण स्तुतियां मिथ्या सिद्ध हुई स्वयमेव । यथा-सूर्य शरमा जाता है निरख देव! तत्व कांतिमहान, भव्यजनों को करवाती तव दिव्यध्वनि धर्मामृत पान ।
( २७/१ )
प्रश्न का समाधान सुनो भव्य ! वस्तुतः भिन्न है जीव देह से यदपि महान् । बंध दशा में ऐक्य मानकर चलता नय व्यवहार विधान । यथा शर्करा मिश्रित जल को मीठा कहता है संसार । त्यों जिनेन्द्र का भी देहाश्रित संस्तव होता विविध प्रकार ।
( २७/२ )
व्यवहार स्तवन का कारण परमौदारिक काय, अलौकिक निर्विकार मुद्रा लख शांत । भव्य जीव परमात्म तत्त्व का दर्शन करता तत्र नितांत । दिव्य देह में बीतरागता यतः प्रस्फुरित है साकार । प्रतः साधु संस्तवन वंदना नित प्रति करते परम उवार । (26) शर्करा-शकर । (27/2)am-महा-जिनेन्द्र के भयर में । प्रस्फुरित-फुरापमान ।