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________________ समयसार-वैभव ( १५/३ ) परमात्मा कौन बनता है ? जो मिथ्यात्व ध्वस्त कर पावन ज्ञान प्राप्त, बन निज रसलीन । कर्म कलंक पंक से होता मुक्त वही सत्पात्र, प्रवीण ! रागद्वेष बिन छुटे स्वात्म को सर्वदृष्टि परमात्म स्वरूपयदि माना एकान्त ग्रहणकर, प्रात्मवंचना यह विषकूप । ( १५/४ ) यथा भिक्षु मन में चक्री बन सिंहासन पर हो प्रासीन-- शासन करने लगा, किन्तु थी उसकी दशा वही अतिदीन । तथा निश्चयाभास विवश जो प्रात्मशुद्ध कह सिद्ध समान - बन स्वच्छन्द विचरण करता वह संसृतिका ही पात्र अजान । ( १६ ) व्यवहार एवं निश्चय मोक्षमार्ग में नाम मात्र कथन का भेद अात्मसिद्धि हित साधुजनों को दर्शन ज्ञान चरित्र महानसद्गुण नित उपासना करने योग्य कहे केवलि भगवान् । निश्चय से ये चिद्विलास हैं, अतः प्रात्म ही हैं साकार । साधन साध्य विवक्षा में त्रयरूप प्रात्म का है व्यवहार । (15/4) संसृति-संसार। अजान-अनान । (16) चिद्विलास-चैतन्य की लीलाएं या कोलाएं अथवा गुण विशेषताएं। साकार-साक्षात् ।
SR No.010791
Book TitleSamaysar Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Dongariya Jain
PublisherJain Dharm Prakashan Karyalaya
Publication Year1970
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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