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जादाजीवाधिकार
( १४२ )
निश्चय नय के भेद प्रभूताथ-भूतार्थ भेद से निश्चय नय है उभय प्रकारअभूतार्थ निश्चय अशुद्ध है, पर भूतार्थ शुद्धनय सार। जिसको त्रैकालिक स्वभाव पर दृष्टि वही निश्चय भूतार्थ । जीव मलिन कहकर विभाव से अंभूतार्थ होता चरितार्थ ।
( ११४३ )
व्यवहार नय के भेद भूतार्थाभूतार्थ भेद से दो प्रकार त्यों नय व्यवहार । सद्गुण-पर्यायाश्रित पहिला अभूतार्थ तद्भिन्न विचार । ज्ञान दर्श गुण भेद कथन ही है भूतार्थ प्रथम व्यवह र। नर नारक रागादि जीव के कहता अभूतार्थ व्यवहार।
( ११/४ )
उपचरित नय का स्वरूप व दृष्टांत इनसे भिन्न उपचरित भी इक नय कहलाता है व्यवहार। जो कि वस्तु के गुण तदन्य में प्रारोपित करता हर बार। घी का घड़ा-तल का चूड़ा-रूपी जीव प्रादि दृष्टांतहै उपलब्ध लोक में अगणित, जिनमें है उपचार नितांत । (11/2) उभय-दो विभाव-राग शेषादि विकार । चरितार्थ-घटित। (11/3)सद्गुणशुदगण। तद्भिन्न-उससे भिन्न। (11/4) तदन्य-उससे भिन्न । आरोपित-स्थापित।