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सर्व विशुद्ध जानाधिकार
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( ११४/३ )
"तथा दुराशय यह मत लेना-मनि बनना है व्यर्थ समानहम स्वछंद विचरण कर निश्चय नय से कर लेंगे कल्याण।" जो स्वछंद विचरण करता वह मार्ग भ्रष्ट व्यवहार विहीननिश्चय पथ से बहुत दूर है ' स्वैराचारी सतत मलीन ।
( ४१४/४ )
श्रावक-श्रमण वृत्ति या तप, व्रत, संयमादि नहि व्यर्थ, निदान । निश्चय पथ में परम सहायक बन करते जो जन कल्याण । इन्द्रिय विषयासक्त, पापरत, पाखंडी, व्यसनों में चूरशठ से रहती प्रात्म साधना-सत्समाधि सब कोसों दूर ।
( ४१४/५ )
जबकि पाप सह विषय वासना विषका सम्यक कर परिहार । द्रव्यलिंग मुनि-श्रावक का गह पाता व्यक्ति समय का सार । अभिप्राय यह है कि समन्वित नय सुदृष्टि द्वारा सविशेषतत्व समस्त निष्पक्ष भाव से समयसार में करो प्रवेश ।