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.. गंगा ४३७-७८६ .... . चक्रवर्ती ४६७
गणि पिटक-शास्त्र । ये शास्त्र चौदह रत्न ३४३, ६८८ . द्वादशांगी. या बारह अंगोंके चौदह राज लोक ६४१ . . नाम पहचाने जाते हैं। उनके जंबू द्वीप ६४६ नाम ये हैं-१-आचारांग, जन्मकल्याणक १३६, ५५४ २- सूत्रकृतांग, ३- स्थानांग, जातिस्वभाव ८८ ४- समवायांग, ५- भगवती जीव २५ (व्याख्या प्रज्ञप्ति), ६-ज्ञाता ज्ञान २६७, ६३६, ६४० धर्मकथा, ७-उपासकदशा,८- ज्ञानकल्याणक २५०-६४० . अंतकृद्दशा, ६-अनुत्तरोपपा- ज्ञानदान २४ तिक,१०-प्रश्नव्याकरण, ११- ज्योतिष्क मंडल ६४६. : विपाकसूत्र और १२ दृष्टिवाद। तप (बारह तरह का) ३१ इन्हींको प्रवचन' भी कहते हैं। तापसोंकी उत्पत्ति २२३ . गति ६८ ... तीन रत्न ६१६ गणधरोंकी स्थापना २७६,६७३ तीर्थ (चतुर्विध संघ) २७४
गुणव्रत तीन ३०, २७३. तीर्थकर ४६१ । गुणस्थान ६२७
त्रिपदी २७६ • गुप्ति २८,५३६
दान (तीन तरहका) २३, २४ गृहस्थ (केवली) ५०७ दिक्कुमारियों छप्पन १४०, गोमूत्रिका विधान ८७
दीक्षाकल्याणक २१३, ६१२ ग्रोप्मवर्णन १६
दीव्य (पाँच) २४० . पातिकर्म ६५
देयशुद्ध ६ घुणाक्षरन्याय ४१६ देशविरति ३० चरित्र २७१
देशावकाशिक २७४
गौरव २८