________________
त्रिषष्टि शलाका पुरय-चरित्र
मुनि-क्षमावान, पृश्वीकाय-संरक्षक, श्रोत्रंद्रियको वशम करनेवाला. आहारसंज्ञा-रहित, मनसे (पापव्यापार ) न करें। इसी तरह मुनि मार्दव-युक्त, पृथ्वीकाय-संरक्षक, श्रोत्रेन्द्रियको वशमें करनेवाला, आहारसंज्ञा-रहित, मनसे (पापन्यापार)न करे। इसी तरह अतिधर्मके दूसरे पाठ भेद गिननेसे कुल १० भेद होते हैं। इन १० भेदोंको पृथ्वीकायकी तरह ही अपकाय आदि मिलानेसे १०x१०-१०० मेद हुप। ये सो भेट श्रोत्रंद्रिय आदि ५ इन्द्रियोंके संयोगसे (१००४५)=५०० मेद हुए। ये पाँच सौ भेद आहार आदि४ संज्ञाओंके संयोगसे (५००x४)=२००० भेद हगाये दो हजार भेद मन धादि३ योगोंके संयोगसे (२०:०४३) =६००० भेद हए । और ये छः हजार भेद न करना आदि ३ करणोंके संयोगसे (ER:0x३) १८००० भेद हुए। इस तरह शीलांगके अठारह हजार मेद होते हैं।
३ करण, ३ योग, ४ संज्ञाएँ, ५ इन्द्रियाँ और १० पृथ्वीकाय यादि (५. स्थावर.१ त्रस और १ अजीव) और १० यति धर्मः इन सबको अापसमें गुरगनसे १८००० होते हैं। ये ही शीलांग अठारह हजार भेद है। गुणाकार-(Ex-ex2-३६५=१८०x१०%D१८००x१०%१८०००)
"जोए करणे सन्ना, इन्द्रिय मोमाई समाधम्म य । सोलंग-सहस्साणं, अटारस-सहन्स रिगष्फत्ती " ( दशावकालिक नियुक्ति गाथा १७७ )
११-अंगमदेवकृत उपसर्ग महावीर स्वामी अन तप सहित पदाला नामक गाँवके पोलास नामक चत्यमें एक शिला पर गतमें ध्यानमग्न थे। उस