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श्री अजितनाथ-चरित्र
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- शिखरोंको ऊँचा उठाया है और किनारेपर पानीके टकरानेसे होनेवाले शब्दों द्वारा ऐसी मालूम होती थी मानो वह जोरसे बाजे बजा रही है। इस तरह अपने जलके वेगसे दंडके द्वारा बनाए गए पृथ्वीके मार्गको दुगना चौड़ा करती हुई गंगा अष्टापदगिरिके चारोंओर बनाई गई खाईके पास आई और उसमें इसी तरह गिरी जैसे समुद्र में गिरती है । पातालके समान भयंकर हजारयोजन गहरी खाईको पूरने में वह प्रवृत्त हुई। जहसे अष्टापद पर्वतकी खाई पूरनेके लिए गंगाको लाया था इसलिए उसका नाम जाह्नवी कहलाया । बहुत पानीसे खाई पूरी भर गई तव अल नागकुमारोंके मकानों में धारायंत्रकी तरह घुसा। बिलोंकी तरह नागकुमारोंके मंदिर जलसे भर गए । इससे हरेक दिशामें नागकुमार ब्याकुल हुए; फुकार करने लगे और दुःखी हुए। नागलोककी व्याकुलतासे सर्पराज ( नागकुमारोंका इंद्र ज्वलनप्रभ) बहुत गुस्सा हुआ। अंकुश मारे हुए हाथीकी तरह उसकी प्राकृति भयंकर हो गई। वह बोला, "सगरके पुत्र पिताके वैभवसे दुर्मद हो गए हैं, इसलिए ये क्षमा करने योग्य नहीं है। ये गधेकी तरह दंड देनेके लायक है। हमारे भवनोंको नष्ट करनेका इनका एक अपराध मैंने क्षमा कर दिया था; इनको उसके लिए कोई सजा नहीं दी थी। इसीलिए इन्होंने फिरसे यह अपराध किया है। इसलिए अब मैं इनको इसी तरह सजा देंगा जिस तरह रक्षकलोग चोरोंको सजा देते हैं।"
इस तरह अति कोपसे भयंकर बोलता, असमयमें कालाग्निके समान अत्यंत दीप्तिसे दारुण दिखता, और बड़वानल जैसे समुद्रको सुखा देने की इच्छा करता है वैसे, जगतको जला