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७२२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व २. सर्ग ५.
स्वामीने कहा, "कई भव पहले तुम रंभक नामके सन्यासी थे। उस समय तुम्हारे शशि और आवली नामके दो शिष्य थे। उनमें से आवली नामका शिष्य बहुत नम्र होनेसे तुमको अति प्रिय था। उसने एकवार गाय खरीदनेका सौदा किया, तभी कठोर हृदयवाला शशि वीच में पड़ा। उसने,गायके मालिकको बहकाकर गाय खरीद ली। इससे दोनोंकी आपसमें लड़ाई हुई। खूब केशाकेशी, मुक्कममुक्का और लीलट्ठा हुई । अंतमें शशिने प्रावलीको मार डाला। चिरकाल तक भवभ्रमण करते हुए शशि यह मेघवाहन हुआ और आवली यह सहस्रनयन हुआ । यही इनके बैरका कारण है।दानके प्रभावसे अच्छी गतियोंमें भ्रमण कर रंभकका जीव-तुम चक्रवर्ती हुए हो। सहस्रनयनके लिए तुम्हारा स्नेह पूर्व भवोंसेही चला आ रहा है।
(२०-२६) उस समय वहाँ समवसरणमें भीम नामका राक्षसपति बैठा था। उसने वेगसे उठकर मेघवाहनको गले लगाया और कहा, "पुष्करवर द्वीपके भरत क्षेत्रमें, वैताढ्य पर्वतपर कांचनपुर नामके नगरमें पूर्वभवमें मैं विद्युइंष्ट्र नामका राजा था । उस भवमें नू मेरा रतिवल्लभ नामका पुत्र था। हे वत्स ! तू मुझे बहुत प्रिय था। अच्छा हुआ कि आज तू मुझे दिखाई दिया। इस समय भी तू मेरा पुत्रही है, इसलिए मेरी सेना और दूसरा जो कुछ मेरा है उसे ग्रहण कर। और लवण समुद्रमें देवताओंके लिए भी दुर्जय,सात सौ योजनका सर्व दिशाओंमें विस्तारवाला.. राक्षसद्वीप नामका सर्व द्वीपोंमें शिरोमणि एक द्वीप है। उसके मध्यमें पृथ्वीकी नाभिमें मेरुपर्वतके जैसा त्रिकूट नामका पर्वत