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६४८ ) त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्ष २. सर्ग ३. असंख्य सूर्य और चंद्र घटाके श्राकारमें सुंदर मालूम हो इस तरह रहे हुए हैं। स्वयंभूग्मण समुद्र उनकी सीमा है और एक एक लाख योजनके अंतरसे वे अपनी अपनी पक्तियों में सदा स्थिर है। (५२९-५५१) ___"मध्यलोकमें,जबूद्वीप और लवणसमुद्र वगैरा अच्छे अच्छे नामवाले और एक दूसरेसे दुगने दुगने विस्तारवाले, असंख्य द्वीप और समुद्र हैं । हरेक द्वीपको समुद्र धेरै हुए है इसलिए वे गोलाकारवाले हैं। उनमें स्वयंभू नामका महोदधि अंतिम है।
(५५२-५५३) ___ "जबूद्वीपके मध्य में सोनेके थाल जैसा गोल मेरुपर्वत है। वह पृथ्वीतलमें एक हजार योजन गहरा है और निन्यानवे हजार योजन ऊँचा है । पृथ्वीतल में उसका विस्तार दस हजार योजन है और ऊपर उसका विस्तार एक हजार योजन है। तीन लोक और तीन कांडसे यह पर्वत विभक्त है। मुमेह पर्वतका पहला कांड शुद्ध पृथ्वी, पत्थर,हीरे और श है। इसका प्रमाण एक हजार योजन है। इसके बाद उसका दुमरा कांड तिरसठहजार योजन तक जातिवान चाँदी, स्फटिक, श्रकरत्न और स्वर्णसे भरा है। मेनका तीसरा कांड छत्तीस हजार योजनका है। वह स्वर्ण शिलामय है और उसपर बेडूयरत्नकी चूलिका है, उसकी ऊँचाई चालीस योजन है। मूलमें उसका विस्तार बारह योजन है, मध्यमें पाठ योजन है और ऊपर
१- भूमि में हजार योजन कहा गया है। इससे मालूम होता है कि मी योजन अवानाकमें, नौ सौ नीचेके लोकमें, नौ सौ करके तिथंग लोकम और शेष ८१०० योजन मज़लोकमें है। २-माग ।