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६३२ 1 त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग ३.
क्षेत्र और द्रव्यादि कारणोंसे जन्मी हुई वैररूपी श्राग भी शांत हो जाती है। हे नाथ ! अकल्याणका नाश करनेमें ढिंढोरेके समान अापका प्रभाव पृथ्वीपर भ्रमण करता रहता है, इसलिए मनुष्यलोकके शत्रुरूप महामारी वगैरा रोग उत्पन्न नहीं होत हैं। विश्वके वत्सल और लोगोंके मनोरथोंको पूर्ण करनेवाले आपके विचरण करते रहने से उत्पात करनेवाली अतिवृष्टि या अनावृष्टि भी नहीं होती। आपके प्रभावसे,सिंहनादसे हाथियोंकी तरह, स्वराज्य और परराज्य संबंधी क्षुद्र उपद्रव तत्कालही नष्ट हो जाते हैं। सब तरहके अद्भुत प्रभाववाले और जंगम कल्पवृक्षके समान श्राप जिधर जाते हैं उधर अकाल मिट जाता है। आपके मस्तकके पिछले भागमें जो भामंडल है वह सूरजके तेजको जीतनेवाला है; वह इसलिए पिंडाकारमें बना जान पड़ता है कि आपका शरीर लोगोंके लिए द्वरालोक न हो जाय। हे भगवान ! घातिकमाका क्षय होनेसे आपके इस योगसाम्राज्यकीमहिमा विश्वमें प्रख्यात हुई है। यह बात किसके लिए श्राश्चर्यका कारण न होगी ! तुम्हारे सिवा दूसरा कौन अनंत कर्मरूपी तृणोंको सब तरहसे जड़मूलसे उखाड़कर भस्म कर सकता है। क्रियाकी अधिकतासे आप इस तरहके प्रयत्नों में लगे हुए हैं, कि
आपके इच्छा न करनेपर भी लक्ष्मी आपका आश्रय लेती है। मंत्री(प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ चार भावनाओ)के पवित्र
मंत्रा-समान धर्मवालोंसे मित्रता करना-करनेकी भावना रखना । (२) प्रमोद-गुणियोंसे प्रसन्नताका व्यवहार करनाकरनेकी भावना रखना। (३) करुणा-दुखी जीवांपर दया करनाकरनेकी भावना रखना। (४) माध्यस्थ-विरोधियों की उपेक्षा करनाकरने की भावना रखना।