________________
श्री अजितनाथ-चरित्र
श्रीदामगंड (फूलोंकी मालाओंका गुच्छा) वाँधा; प्रभुकी आँखोंको आनंदित करनेके लिए मणिरत्न-सहित हार और अर्धहार वहाँ लटकाए। फिर, चंद्रमा जैसे कुमुदिनीकी और सूर्य जैसे पद्मिनीकी निद्रा हर लेते हैं वैसेही, उसने विजयादेवीको दी हुई निद्रा हर ली। इंद्रकी आज्ञासे कुवेरकी सूचनानुसार भक जातिके देवताओंने जितशत्रु राजाके घरमें उस समय बत्तीस फोटि (मूल्य वाले) सोने, चाँदी और रत्नोंकी अलग अलग वर्षा की; बत्तीस नंदभद्रासन (सिंहासन-विशेष ) वरसाए; मण्यंग' कल्पवृक्षोंकी तरह उन्होंने आभूपणोंकी वर्षा की; अनग्न कल्पवृक्षोंकी तरह वस्त्रोंकी वर्षा की और भद्रशालिक वनमेंसे चुन चुन कर लाए हुए हों ऐसे, पत्तों, पुप्पों और फलोंकी चारों तरफ वृष्टि की। चित्रांग नामके कल्पवृक्षकी तरह उन्होंने विचित्र वोंकी फूलमालाओंकी वर्षा की; ऐलादिक चूर्णको उड़ानेवाले दक्षिण पवनकी तरह गंधवृष्टि और पवित्र चूर्ण-वृष्टि की । इसी तरह पुष्करावर्त मेघ जैसे जलधार वर. साता है वैसेही अति उदार वसुधारा-वृष्टि की। फिर शकेंद्र. की आज्ञासे उसके श्राभियोगिक देषोंने यह उद्घोषणा कीढिंढोरा पीटा,____ "हे वैमानिक,भुवनपति, ज्योतिष्क और ब्यंतर देवताओ! तुम सब सावधान होकर सुनो। जो अहंत और उनकी माताफा अशुभ करनेका विचार करेगा उसका मस्तक अर्जकर की मंजरीकी तरह सात तरहसे छेदा जाएगा।" (५०२-५१)
१-जेवर देनेवाले कल वृत । २-वस्त्र देनेवाले फल यच। ३-धनकी वृष्टि। ४-तुलसी।