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५८२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २ सर्ग २.
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समान दोनों हाथोंने अंजली बनाकर बड़े लोरोसे जय जय शब्दका उच्चारण किया; फिर चतुर संवाहक (स्नान करानेपाले सेवक ) की तरह, सुखपश हाथम, देवदूज्य बन्न द्वारा प्रभुका शरीर पांछा। नट जैस नाटक करता है सही, उसने भी, देवनाओं के साथ, प्रमुक लामनं अभिनय किया। पश्चात प्रारणाच्युन कल्पक इंद्रन गोशीयं चंदनकं रमन प्रगुका बिलपन किया; दिव्य और भूमि उदभून फूलोंसे प्रमुक्री पूना की; चाँदीक स्वच्छ और अवंड अक्षता । नाकं चावलों) से प्रमुके आगे कुंभ, भद्रासन, दर्पा, श्रीवल्ल, स्वस्तिक, नंद्यावत, वर्षमान और मल्ययुग-अष्ट मंगल बनाए; और संध्याके श्राकाशकी कणिका (बूट) के समान पाँच वग्गों के फूलोंका ढेर प्रमुक सामन लगाया। वह दर युटनातक पहुचे इतना था। धुपकी रेखायोंमें मानो स्वर्गको दोरगावाला बनाता हो ऐसे उसने घृषकी अग्निको धूपित किया। उपदानीको ऊँचा करत समय देवता बाजे बजान थे; उन बाजोंकी आवाज ऐसी मालूम होनी थी मानो उसने बुलंद आवाजबाले महायोष नामक घंट को भी छोटा बना दिया है। फिर ज्योतिमंडलकी लक्ष्मीका अनुसरण करनेवाली और ऊँचे शिलामंडलवाली भारती उतार, सात-पाठ कदम पीछे हट, प्रयास कर, रोमांचित शरीरवाल अच्युतेंद्रने, इस तरह स्तुति की,-(४६१-४७०) __"हे प्रभो ! खर सोनेके छेद (हुकई ) के समान छबिसे आकाशके भागको ढकनेवाले, और प्रक्षालनके बिना पवित्र तुम्हारी काया किमपर श्राक्षेप न करें ? (श्रयात दूसरी सभी चीनोंकी तुलना में श्रापका शरीर सुंदर और पवित्र है 1) मुर्ग