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श्री अजितनाथ-चरित्र
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उसी समय दक्षिण श्रेणीके आभूपणरूप चरमचंचा पुरीमें 'सुधर्मा सभाके अंदर चमरेंद्रका आसन काँपा। उसने अवधिज्ञानसे तीर्थंकरका पवित्र जन्म जाना। उसने सिंहासनसे उठ सात आठ कदम (तीर्थकरके जन्मस्थानकी दिशामें) सामने चलकर वंदना की। उसकी आज्ञासे तत्कालही, द्रुम नामके -पैदल (सेनाके ) सेनापतिने सुस्वरवाला श्रोधस्वर नामक घंटा बजाया। उसका स्वर शांत होनेपर पूर्ववत ( ईशान देवलोकके सेनापतिकी तरह दुमने ) घोषणा की। इससे पक्षी संध्याके ममय जैसे वृक्षके पास आते हैं वैसेही सभी देव चमरेंद्र के पास आए। इंद्रकी याज्ञासे उसके अभियोगिक देवताने आधे लाग्न योजन प्रमाणवाला एक विमान बनाया। पाँच सौ योजन ऊँचे इंद्रध्वजसे सुशोभित वह विमान, कूपक ( मस्तूल ) सहित, जहाजके समान मालूम होता था। चौसठ हजार सामानिक देवता, तेतीस त्रायस्त्रिंश देवता, चार लोकपाल, तीन पदाएँ, सात बड़ी सेनाओंके सात सेनापतियों, सामानिक देवोंसे चौगुने (अर्थात् २५६०००) आत्मरक्षकों, दूसरे असुरकुमार देवों व देवियों, पाँच महिपियों और अन्य परिवार सहित चमरेंद्र उस विमानमें सवार हया। क्षणभरमें वह नंदीश्वर द्वीप पहुँचा; यहाँ उसने अपने रतिकर पर्वतपर शकेंद्रकी तरह विमानको छोटा बनाया, और पूर्व समुद्रमें जैसे गंगाका प्रवाह पहुँचता है. उसी तरह के वेगसे वह मेरुपर्वतके शिखर पर प्रभुचरणके समीप पहुँचा । ( ३७४-३८४)
उत्तर श्रेणी के आभूपणाप बलिचंचा नामक नगरी है। असमें बलि नामका इंद्र राज्य करता है। उसका सिंहासन कौंपा
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