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३४ । त्रिषष्टि शन्लामा पुरुष-चरित्रः पर्व १. मग १.
सार्थक सभी लोग, ( अपने अपने डेरे उम्बादकर) इस तरह रवाना हो गए, जैसे गवान के सिंगी नादसे गायोंका समूह चल पड़ना है। (२१-२१६)
अन्यजीयमा कमलको बोध करने में प्रवीगा धर्मयोपं प्राचार्यन मुनियोंके साथ इसी तरह विहार किया जिस तरह किरणांसे घिरा हुया नुरज चलना है। साथकी रत्ताक लिए
आगे, पीछे और बार-बार सिपाहियोंको मुर्रिर कर धनसेठ भी वहसि रवाना हुथा। नार्थ नब उस महाजंगलको पारकर गया नुन, श्राचार्य धनमेंटकी अनुमति लेकर दृसरी तरफ विहार करना । (२२०-२२२)
नदियाँका समूह जैसे नमुद्रमें जाना है उसी तरह धनसेठ मी मशाल रलोको पारकर वसनपुर पहुँचा। यहाँ थोड़े समय नक रहकर उसने अलमाल बेचा और मुछ यहाँस नया वरीदा। फिर, समुद्र से जैसे बादल जलपूर्ण होते है बैंमेदी, धनसंठ भी दोलनसे भरा-पूरा होकर लौटा; क्षितिप्रतिष्टितपुर श्राया । कुछ बरलोक बाद उनकी उन्न पूरी हुई और वह कालधर्मको प्राप्त हुअा-मर गया । (२२१-२२५१ )
दृमरा भव . मुनिको दान दनक प्रभाव घनसेठका जीव उत्तरकुमनेत्रमें गुगलिया न्य जन्मा। वहाँ मुदा एकांत मुषमा ( मुख ही मुन्न हो ऐसा) नामको धारा (समय) वर्तता है। वह स्थान मीता नदीक टनर तटपर, अंबू वृक्ष पूर्व भागमें है। उस १-दालक-बान्तिका एक साथ जन्मंद है।