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५५० ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व २. सर्ग २.
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(१) गर्जनासे दिग्गजोंको भी जीतनेवाला हाथी । (२) ऊँची ककुद् और उजली (व मुंदर) आकृतिवाला वृषभ । (३) ऊँची केशावलीकी पंक्तिसे प्रकाशित मुखवाला केसरी। (४) दोनों तरफ जिनकें दो हाथी अभिषेक कर रहे हैं ऐसी लक्ष्मी। (५) इंद्रधनुयके समान पत्ररंगी फूलोंकी माला । (६) अमृतकुंडके जैसा संपूर्ण मंडलवाला चंद्रमा । (७) सारे विश्वकै प्रतापको एकत्र किया हो ऐसा प्रतापवाला सूर्य। (5) झूलती पाताकाओंवाला दिव्य रत्नमय महावन । () नए सफेद कमलोंसे जिसका मुख ढका हुआ है ऐसा पूर्णकुंभ । (१०) मानो हजारों आँखोंवाला हो ऐसा, विकसित कमलोस शोभता पद्मसरोवर । (१२) तरंगोंसे मानो आकाशको डुवाना चाहता हो ऐसासमुद्र । (१३) मानो रत्नाचलका सार हो ऐसी, लकलक करती हुई कांतिवाला रत्नपुंज और (१४) अपनी शिखानोंसे पल्लवित करती हुई निघूम अन्नि । ऐसे चौदह सपने उसने देखे हैं। उनके फलतत्वको आप जानते हैं और उनको पानेवाले भी आपही हैं।"
स्वमोंका फल राजाने कहा, "देवी विनयाने भी ये ही सपने रात्रिके अंतिम प्रहरमें, साफ तौरस देखे हैं। यद्यपि चे महा सपने साधारण रीतिसे मी महान फल देनेवाले और चाँदकी किरणोंके समान आनंददायक है तथापि सपनांके विशेष फलोंको जाननवाले पंहितोंसे इन सपनोंका फल पूछना चाहिए। कारणचंद्रमा