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१] विषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व ९. सगं
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अनशन किया। (22=-२६१ ) नेपालकोने, प्रभुको इस तरह रहते देख, तत्काली ये समाचार भारतको दिए। प्रभुने चनुर्विध श्राहारका त्याग किया है, यह बात सुनकर भरनेशकी ऐसा दुख हुआ जैसा शूल चुमसे होना है, जैसे वृक्ष जलबिंदु छोड़ने हैं वैसी यति शोकसे पीड़ित के आँसू गिराने लगे। फिर वे दुबार दुःखसे पीडित परिवार सहित दही की तरफ चले । उरस्नेके कठोर कंकरोंकी भी उन्होंने परवाह नहीं की। कारण:व शुत्रापि वत् ।"
"वेद्य वदनाने
[ की तरह शोक भी नकलीफ मालूम नहीं होनी ।] पैरोसे करेके चुनने के कारण उक्त उपने लगा; उससे उनके पैंक चिह्न जमीनपर इस तरह बन गए जिस तरह तना के निशान होने हैं। पवनपर चढ़ने की गनिमें लेशमात्र भी कमी न हो, इस ग्वालसे वे सामने थाने हुए लोगों की भी परवाह किए बगैर आगे बढ़ने जाने थे। उनके सरपर छ था तो भी, चलते हुए उनको बहुत गरमी मालुम हो रही थी। कारण
"न तापों मानी जातु सुधावृष्ट्यापि शाम्यति ।" [ मनकी चिनाका नाप की वर्षा भी शांत नहीं
होना | ]
ती हाका सहारा देनेवाले सेवकनेवाले वृत्तीकी शास्त्रार्थी
को भी,
भागक तरह एक तरफ हटाने थे। नदियां हुई नौका जैसे किनारे पेड़ों की पीछे छोड़ती हुई धागे बढ़ती है वैसे भर
१ श्री
ने लगाया जानेवाला एक तरहका शाह रंग |