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म० ऋषभनाथका वृत्तांत
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स्वामी ! जैसे राजा गाँवों और भुवनोंसे अपनी नगरीको उन्नत करता है वैसेही आप इस भुवनको (भरतखंडको) भूषित करते हैं । जैसा हित पिता, माता, गुरु और स्वामी सब मिलकर भी नहीं कर सकते, वैसा हित आप एक होते हुए भी अनेककी तरह करते हैं। जैसे चाँदसे रात शोभती है, हंसोंसे सरोवर शोभता है और तिलकसे मुख शोभता है वैसेही आपसे यह भुवन शोभता है।"
इस तरह यथाविधि भगवानकी स्तुति करके विनयी भरत राजा अपने योग्य स्थानपर बैठा । (२५७-२७१)
फिर भगवानने एक योजनतक सुनाई देनेवाली और सभी भाषाओं में समझी जा सके ऐसी, विश्वके उपकारके लिए देशना दी। देशना समाप्त होनेपर भरत राजाने प्रभुको नमस्कार कर रोमांचित हो, हाथ जोड़ निवेदन किया, "हे नाथ ! इस भरत खंडमें जैसे आप विश्वके हितकारी हैं वैसे दूसरे कितने धर्मचक्री होंगे ? और कितने चक्रवर्ती होंगे ? हे प्रभो ! उनके नगर, गोत्र, माता-पिताके नाम, आयु, वणे, शरीरका मान, परस्पर अंतर, दीक्षा-पर्याय और गति,ये सब वाते श्राप बताइए।" (२७२-२७५)
भगवानने कहा, १- "हे चक्री ! इस भरतखंडमें मेरे बाद दूसरे तेईस तीर्थंकर होंगे और तुम्हारे बाद दूसरे ग्यारह चक्रवर्ती होंगे। उनमेंसे वीसवें और बाईसवें तीर्थंकर गौतम गोत्री होंगे और दूसरे कश्यप गोत्री होंगे। वे सभी मोक्षगामी होंगे।
२-अयोध्या जितशत्रु राजा और विजया रानीके पुत्र दूसरे अजित नामके तीर्थकर होंगे। उनकी आयु बहत्तरलाख पूर्वकी,