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४५८ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ६.
के चिह्नवाली तीन रेखाएँ, कांकिणीरत्नसे वैकक्ष' की तरह, उनकी शुद्धि बतानेवाली, बनाने लगे। इसी तरह हर छठे महिने श्रावकोंकी परीक्षा की जाती थी और कांकिणीरत्नसे (उनकी छातीपर) रेखाएँ बनाई जाती थीं। उस चिह्नसे वे भोजन पाते थे और उच्च स्वरसे जितो भवान्' इत्यादि (वाक्य) बोलते थे। इससे वे 'महान' नामसे प्रसिद्ध हुए। वे अपने बालक साधुओंको देने लगे। उनमसे कई विरक्त होकर स्वेच्छासे व्रत ग्रहण करने लगे और कई परिसह सहन करनेमें असमर्थ होनेसे श्रावक बनने लगे। कांकिणीरत्नसे चिह्नित उनको भी निरंतर भोजन मिलने लगा । राजा इन्हें भोजन कराता था, इससे दूसरे लोग भी इनको भोजन कराने लगे। कारण
"पूजितः पूजितो यस्मात्केन केन न पूज्यते।"
[पूच्च पुरुप जिसको पूजते हैं उसको कौन कौन नहीं पूजता है ? अर्थात सभी उसको पूजते हैं।] उनके स्वाध्यायके लिए चक्रीने अहंतोंकी न्तुति मुनियों तथा श्रावकोंकी समाचारीसे पवित्र ऐसे चार वेद रचे । क्रमशः वे 'भाइना' के बदले ब्राह्मणा' इस नामसे प्रसिद्ध हुए और कांकिणी रत्नसे जो रेखाएँ बनाई जाती थीं वे यज्ञोपवीतके रूपमें पहिचानी जाने लगी । भरत राजाकी जगह जब उनका पुत्र 'सूर्ययशा' गद्दीपर बैठा तब उसके पास कांकिणी रत्न न रहा, इसलिए उसने (तीन तारोंवाला) नोनेका यज्ञोपवीत बनवाकर देना प्रारंभ
१-लनेककी तरहका एक हार । चक्रवर्तीक पानही रहता है।
-कांकिणी रन केवल