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२४] त्रिषष्टि शलाका पुस्य-चरित्र पर्व र सर्ग १.
शत्रुओं संकटने कवच है. सील पैदा हुई जनाको मिटानमें धूप है और पापक मर्मको जाननेवाला है। धर्मसे जीव . राजा बनता है, बलदेव होता है, अर्द्धचक्री (वासुदेव ) होना है, चक्रवर्ती होना है, देव और इन्न होना है, अवयक और. अनुत्तर विमान (नामके न्वगों) में अहमिन्द्र होता है और धर्महीसे तीर्थकर भी बनता है। वमने क्या क्या नहीं मिलता है ? (सब कुछ मिलता है। ) (१४३-१५१)
"दुर्गनिप्रपतवंतुधारमार्म उच्यते।" [दुर्गनिमें गिरने हुए जीयाको जो धारण करता है (बचाता है) उसे धर्म कहनें है। वह चार नरहका है। (उनके नाम है) दान, शील, नप और मात्रना । (१५२)
दानधर्म नीन नाहका है। उनके नाम हैं. १. बानदान २. अमयदान ३. धर्मायग्रहदान । १५३
धर्म नहीं जाननवानांनी पाचन या उपदेश श्रादिका दान देना अथवा दान पान सावनोंका दान देना बानदान कहलाता है। ज्ञानदान प्राणी अपने हिताहितको जानता है। और उससे हिन-अहिती सुमन, जीवादि तलाको पहचान बिरनि (वैनन्य) प्राप्त करता है। बानवान प्राणी मन्चल केवलज्ञान पाना है और नत्र लोक पर कृपाकर लोमात्र मागपुर श्राद्ध होता है (मोक्षमें जाता है) 1 (१४2-१५६)
अमयानका अभिप्राय है मन, वचन और कायासे जीवको नगरना, न मरखाना और न मारनेत्राताअनुमोदन करना (मारने कामको मल्ला न बताना।) (१५५%