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स्था छहा भगवान ऋपभनाथका वृत्तांत त्रिदंडी ( परिव्राजक ) साधुओंकी उत्पति
भगवान ऋपभदेवका शिष्य अपने नामकी तरह ग्यारहअंगोंका पढ़नेवाला, साधुओंके गुणोंसे युक्त और हस्तिपतिके साथ जैसे कलम (हाथीका बच्चा) रहता है वैसे निरंतर स्वामीके साथ विचरण करनेवाला भरत-पुत्र मरीचि गरमीके मौसममें स्वामीके साथ विहार करता था। एक दिन दुपहरका समय था, चारों तरफ मार्गकी रज सूर्यकी किरणोंसे ऐसी गरम हो रही थी, मानो लोहारोंने धोकनीसे धोककर उसे गरम किया हो, मानो अदृश्य अग्निकी ज्वाला हो,ऐसे बहुत गरम ववंडरसे मार्ग कीलित हो गए थे ( रुक गए थे), उस समय अग्निसे तपे हुए जरा गीले ईंधनकी तरह उसका शरीर सरसे पैरतक पसीनेकी धाराओंसे भर गया था। जलसे छींटे हुए सूखे चमड़ेकी गंधकी तर पसीनेसे भीगे हुए वस्त्रों के कारण उसके शरीरके मलसे दुःसह दुगंध आ रही थी। उसके पैर जल रहे थे, इससे उसकी स्थिति तपे हुए भागमें स्थित नकुलके जैसी मालूम होती थी और गरमीके कारण वह प्यासके मारे घबरा रहा था। उस समय मरीचि व्याकुल होकर सोचने लगा, (७) ____ "अहो ! केवलज्ञान और केवलदर्शनरूपी सूर्य और चंद्रके द्वारा मेरुपर्वतके समान और तीन लोकके गुरु ऋपभ