________________
..
..
भरत-बाहुबलीका वृत्तांत
[४१३
-
(मंत्र जाननेवाले ) पुरुष जैसे मंडलकी भूमिमें (मंत्री हुई जमीनमें)फूल बरसाते हैं ऐसेही.देवोंने रणभूमिमें फूल बरसाए। फिर कुंजरकी तरह गर्जना करते हुए दोनों राजकुंजरोंने, हाथियोंसे उतर कर, रणभूमिमें प्रवेश किया। महा बलवान और लीलासे चलनेवाले वे पद-पद पर कूर्मेंद्र को, उसके प्राणोंकी शंकामें डालने लगे। (५७१-५७७)
पहले उन्होंने दृष्टि-युद्ध करनेकी प्रतिज्ञा की; और मानो दूसरे इंद्र और ईशानेंद्र हों इस तरह अनिमेष नेत्रोंसे एक दूसरेको देखते हुए खड़े रहे। लाल आँखोंवाले दोनों वीर आमने सामने खड़े हुए एक दूसरेका मुंह देख रहे थे वे उस समय, आमने सामने खड़े हुए, सूरज और चाँदकी तरह शोभते थे। वे ध्यान करनेवाले योगियोंकी तरह, निश्चल नेत्रोंसे, बहुत देरतक स्थिर खड़े रहे। अंतमें, सूरजकी किरणोंसे आक्रांत नीलकमलकी तरह, ऋपभस्वामी के बड़े पुत्र भरतकी आँखें बंद हो गई, ऐसा मालूम हुआ मानो छःखंड भरतद्वीपको जीतनेसे जो कीर्ति महाराज भरतको मिली थी उसे, उनकी आँखोंने पानी देनेके बहाने अश्रुजलके द्वारा मिटा दिया। सवेरेही जैसे वृक्ष हिलते हैं वैसे देवताओंने उस समय सर धुने और महाराज बाहुबली पर फूल बरसाए । सूर्योदयके समय पक्षियोंकी तरह, वाहुबलीकी जीत होनेसे सोमप्रभा आदि ने हर्पध्वनि की। कीर्तिरूपी नर्तकीने जैसे नाचना शुरू किया हो ऐसे वाहुबलीके सैनिकोंने जीतके वाजे बजाए। भरत राजाके सुभट ऐसे शिथिल हो गए मानो वे मूर्छित हो गए हों, सो गए हों या बीमार हों। अंधकार और प्रकाशवाले मेरुपर्वतकी दोनों घाजुभोंकी तरह