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भरत पाहुघलीका वृत्तांत
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(मेरे जीतने के बारेमें जो शंका है वह ) शका मिट जाएगी।"
(५४१-५५६) इसके बाद चक्रवर्तीने सेवकोंसे एक बहुत लंबा, चौड़ा और गहरा खड़ा खुदवाया। दक्षिण समुद्रके तीरपर जैसे सह्य (सह्याद्रि ) समर्थ पर्वत रहता है वैसे उस खडेके किनारे भरतेश्वर बैठे और वटवृक्षकी लटकती हुई लंबी लंबी जटाओंकी तरह, भरतेश्वरने अपने बाएँ हाथपर, एकके ऊपर एक, मजवून साँकलें बँधवाईं। किरणोंसे जैसे सूर्य शोभता है और लताओंसे जैसे वृक्ष शोभता है वैसेही एक हजार साँकलोंसे महाराज शोभने लगे। उसके बाद उन्होंने सैनिकोंसे कहा, "हे वीरो! जैसे बैल गाडीको खींचते हैं वैसेही तुम मुझे अपने वल और वाहनसे निर्भय होकर खींचो। तुम सब अपने एकत्रित वलसे खींचकर मुझे इस खडेमें डाल दो। स्वामीकी भुजाओंकी परीक्षामें स्वामीका अपमान होगा यह सोचकर छल न करना। मैंने ऐसा बुरा सपना देखा है, इससे तुम उसका नाश करो। कारण,
"स हि मोधीभवेदेव चरितार्थी कृतः स्वयम् ।"
[जिसे सपना आता है वह खुदही यदि सपनेको सार्थक करता है अर्थात वैसा आचरण कर लेता है तो फिर सपना निष्फल होता है। चक्रीने इस तरह बार बार कहा तब सैनिकोंने बड़ी कठिनतासे उसकी यह बात मानी (माननी पड़ी) कारण
" "स्वाम्याज्ञा हि बलीयसी ।" (स्थामीकी आज्ञा घलवान होती है। फिर देवों और