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2] त्रिषष्टि शम्हाका पुनप-चरित्रः पर्व १. सर्ग ५.
नौत नंमत्र नहीं है ऐसही, आपसे यह संभव भी नहीं है । अत्रनक भी कुछ बिगड़ा नहीं है, इसलिए दुष्ट पुस्पकी मित्रताके समान इस लड़ाइको छोड़ दीजिए। हे वीर ! वैसे मंत्रोंसे बड़े बड़े सर्प पीछे लौटाए जाते है ऐसही, अपनी बाबासे इन बीर पुन्योंको लडाइस वापस लौटाइए और अपने बड़े भाई भरतके पास जाकर उनी अनिता स्वीकार कीजिए। ऐसा करके
आप ऐसी प्रशंसा पाएँगे कि शक्तिशाली होते हुए भी श्राप विनयी बने। भरनु राजा प्रामकिप हुए छन्वंह मरत क्षेत्रका
आप अपने ज्यान लिप हुपक्षेत्री तरहही उपभोग कीजिए। कारण, श्राप दोनों में कोई अंतर नहीं है।" (१७५-४८५)
एला कहकर वे जब वी तरह शांत हुए तब, बाहुबलीने कुछ, हैनचर गंभीर याणीने कहा, "ह देवताओ! हमारी लड़ाई नत्व जान कर आप अपने स्वच्छ मनसे यों कह रहे है। श्राप पिताजी भक्त है, हम उनके पुत्र है। इस तरह आपका और हमारा संबंध है, इसीलिए आप ऐसा कहते हैं। वह योग्यही है। नदीनाले समय पिताजीने से यात्राको सुवर्णादि दिया इसी तरह हमच्चो और भरतको राज्य बाँट दिए थे। पिताजीन मुले जो चुछ दिया उनीसे संतुष्ट कारण, कंत्रलयन लिए कोई किसी दशमनी क्या करें? परतु समें बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियोको निगल जाती है वही भरतखंडनमा मुन्नबी नलियों समान रहनवा गजान बड़ी मछली मान मरत ला गया | खाऊ आदमी जिस वन्ह भोजन संतुष्ट नहीं होता वसं इतने राज्याको जीतने बाद भी वह संतुष्ट नहीं था और उसने अपने