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भरत-बाहुबलीका वृत्तांत
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चंद्रमासे आग बरसना उचित नहीं है ऐसेही, जगत-त्रांता और · दयालु ऋपभदेव स्वामीके पुत्र के लिए भी भाईसे लड़ना उचित : नहीं है। हे पृथ्वीरमण ! जैसे संयमी पुरुष भोगोंसे मुख मोड़ लेता है ऐसेही, आप लड़ाईसे मुँह मोड़कर अपने स्थानपर वापस जाइए। आप यहाँ आए हैं, इसलिए आपका छोटा भाई बाहुबली भी सामने आया है।
.........'कार्य हि खलु कारणात् ।"
कारणसेही कार्य होता है।] जगतको नाश करनेके पापको रोकनेसे आपका कल्याण होगा; लड़ाई बंद होनेसे दोनों तरफकी सेनाओंका कुशल होगाआपकी सेनाके भारसे भूमिका कॉपना बंद होगा, इससे पृथ्वीके गर्भमें रहनेवाले भवनपति वगैरहको आराम मिलेगा; आपकी सेनाके द्वारा होनेवाले मर्दनके अभावमें पृथ्वी, पर्वत, समुद्र, प्रजाजन और सभी प्राणियोंका डर दूर होगा और आपकी लड़ाईसे होनेवाले विश्वके नाशकी शंका मिट जानेसे सभी देवता सुखसे रहेंगे। (४४२-४५५)
इस तरह कामकी बातें देवता कह चुके तव महाराजा भरत मेघके समान गंभीर वाणीमें बोले, 'हे देवताओ! आपके सिवा जगतकी भलाईकी बातें कौन कहे ? प्रायः लोग तमाशा देखनेके इच्छुक बनकर ऐसे कामोंसे उदास रहते हैं। आपने भलाई की इच्छासे लड़ाई के जिस कारणकी कल्पना की है वह वास्तविक नहीं है; कारण अलग है। किसी कार्यका मूल जाने बगैर यदि कोई बात कही जाती है, तो वह निष्फलही होती है, चाहे
वह वृहस्पतिके वाराही क्यों न कही गई हो। मैं बलवान हूँ यह __समझकर मैंने सहसा लड़ाई करनेका निश्चय नहीं किया। कारण,
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