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________________ भरत-बाहुबलीका वृत्तांत [३६३ - अच्छी तरह लड़ाई करनेका फल बतानेवाले, और नारद ऋषि. की तरह वीर सुभटोंको उत्साहित करनेके लिए, मुकाविलेमें भाए हुए शत्रु-वीरोंकी श्रादर सहित तारीफ करनेवाले, चारण . भाट हरेक हाथी, हरेक रथ और हरेक घोड़ेके पास पर्व दिनकी तरह जाने और उन्ध स्वर में प्रशंसाके गीत ऊँचे सुरमें गाते रणमें निर्भय होकर फिरने लगे। (३५२-३६३ ) इधर राजा बाहुवली स्नान करके देवपूजा करनेके लिए देवालयमें गया । कारण.........."गरीयांसः कार्ये मुह्यन्ति न क्वचित् ।" .. [महापुरुष कभी भी (कोई विशेष काम आनेपर) घबराते नहीं हैं। (अपना दैनिक आवश्यक धर्म क्रिया वगैरा करते. ही रहते हैं।)] देवमंदिरमें जाकर, जन्माभिपेकके समय इंद्र जैसे स्नान कराता है वैसे, उसने ऋपभस्वामीकी प्रतिमाको सुगंधित जलसे स्नान कराया। फिर कषाय रहित और परम श्राद्ध (श्रावक) बाहुबलीने, दिव्य गंधवाले काषाय वनसे, मनकी तरह श्रद्धा सहित, उस प्रतिमाको मार्जन किया (पोंछा ); दिव्य वस्त्रमय चोलक ( कवच ) की रचना करता हो ऐसे यक्षकर्दमका लेप किया और सुगंधसे देववृक्ष के फूलोंकी मालाकी सहोदरा (सगी बहन) हो ऐसी, विचित्र फूलों की मालासे प्रभुकी पूजा की। सोनेकी धूपदानीमें उसने दिव्य धूप किया। उसके धुएसे ऐसा मालूम हुआ मानों वह कमलमय पूजा कर रहा है। फिर उसने, मकरराशिमें सूर्य आया हो ऐसे, उत्तरीय वस्त्र कर, प्रकाशमान आरतीको, प्रतापकी तरह लेकर, प्रभुकी आरती उतारी। अंतमें हाथ जोड़, आदीश्वर भगवानको प्रणाम कर,
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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